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________________ ( १२३ ) सयम घर न सकै पै सयम, धारन की उर चटाचटी । तासु सुयश गुनकी 'दौलत' के, लगी रहे नित रटारटी ॥४॥ १६. न्यामत आप मे जब तक कि कोई आपको पाता नही । मोक्षके मन्दिर तलक हरगिज कदम जाता नही | टेक। वेद या पुराण या कुरान सब पढ लीजिये । आपके जाने बिना मुक्ति कभी पाता नही || १ || हरिण खुशबू के लिये दौडा फिरे जंगल के बीच । अपनी नाभी मे बसे उसको नजर आता नही ||२|| भाव - करुणा कीजिये ये ही घरम का मूल है । जो सतावे और को वह सुख कभी पाता नही ||३|| ज्ञानपं 'न्यामत' तेरे है मोह का परदा पडा । इसलिये निज आत्मा तुझको नजर आता नही ||४|| / १७. न्यामत समकित - बिन फल नही पावोगे, नही पावोगे पछितावोगे ॥ टेक ॥ चाहे निर्जन तप करिए, बिन समता दुख दाहोगे ॥ १ ॥ मिथ्या मारग निश दिन सेवो, केसे मुक्ती पावागे ॥२॥ पत्थर नाव समन्दर गहरा, कैसे पार लघावोगे ||३|| झूठे देव गुरु तज दीजे, नहीं आखिर पछतावोगे ||४|| न्यामत' स्यादवाद मन लावो, यासे मुक्ती पावोगे ||५|| १५. शिवराम समझ मन वावरे, सब स्वारथ का ससार ॥ टेक ॥ हरे वृक्ष पर तोता बैठा, करता मोज वहारी । सूखा तरुवर उड गया तोता, छिन मे प्रीति विसारी ॥१॥
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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