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________________ ( ८३ ) (७) असमान जातीय द्रव्यपर्याय मे एकत्वबुद्धि यह मिथ्यादर्शन है । [ गा० ६४ ] प्रश्न ७०----- क्या मिथ्यादर्शन का स्वरूप श्री समयसार में भी आया है ? उत्तर - ( १ ) द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म मे एकत्वबुद्धि मिथ्यादर्शन है । [ गा० १६ ] ( २ ) जब तक यह आत्मा प्रकृति के निमित्त से उपजना - विनशना नहीं छोड़ता है तब तक अज्ञानी है, मिथ्यादृष्टि है, असयत है । [ गा० ३१४ ] (३) (१) शुभाशुभभावो मे और ज्ञप्ति क्रिया मे (२) देव - नारकी और ज्ञायक आत्मा मे (३) ज्ञेय और ज्ञान मे एकत्वबुद्धि मिथ्यादर्शन है, एकत्व का ज्ञान मिथ्याज्ञान है और एकत्व का आचरण मिथ्याचारित्र है । [ गा० २७०] (४) जो बहुत प्रकार के मुनिलिंगो मे अथवा गृहस्थी लिंगो में ममता करते हैं अर्थात् यह मानते हैं कि द्रव्यलिंग ही मोक्ष का दाता है उन्होने समयसार को नही जाना । उसे [ अ ] 'अनादिरुढ' [आ] 'व्यवहार मे मूढ' [इ] और 'निश्चय पर अनारूढ' कहा है यह सव मिथ्यात्व का प्रभाव है । [ गा० ४१३ ] प्रश्न ७१ - छहढाला में अगृहीत मिय्यादर्शन किसे किसे कहा D है ? - उत्तर - ( १ ) आत्मा का स्वभाव ज्ञानदर्शन है । इसको भूलकर शरीर आदि की पर्याय को आत्मा की मान लेना, शरीर आश्रित उपवास आदि और उपदेशादि मे अपनेपने की बुद्धि होना यह अगृहीत मिथ्यादर्शन है । (२) शरीर की उत्पत्ति मे अपनी उत्पत्ति और शरीर के बिछुडने पर अपना मरण मानना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । (३) - शुभाशुभ भाव प्रगट दु.ख के देने वाले हैं उन्हे सुखकर मानना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । ( ४ ) शुभाशुभ भाव एक रूप ही है और बुरे ही है परन्तु अपने आप का अनुभव ना होने से अशुभ कर्मों के फल मे द्वेष
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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