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________________ ( ७७ ) उत्तर-ज्ञानियो को एकमात्र परम पारिणामिक भाव की ही भावना होती है । उसके फलस्वरूप औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव पर्याय मे उत्पन्न होते हैं । परन्तु औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भावो की भावना नही होती है। प्रश्न ५३-ज्ञानियो को पर्याय मे तो औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भाव होते हैं और औदायिक भाव भी होते हैं और आप कहते हैं कि ज्ञानियों को उनकी भावना नही है ? उत्तर-अरे भाई, पर्याय मे औपशमिकादिक भावो का होना अलग बात है और उसकी भावना करना अलग बाल है । क्योकि ज्ञानी श्रद्धा मे एकमात्र अपने परम पारिणामिक ज्ञायक भाव को ही स्वीकार करते है, निमित्त भगभेद, अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्याय को नही स्वीकार करते हैं । (२) ज्ञानी अपने सम्यग्ज्ञान मे परम पारिणामिक भावरूप अपने जीव को आश्रय करने योग्य जानता है। औपशमिक, धर्म का क्षायोपशमिकभाव और क्षायिकभाव अर्थात् सवर, निर्जरा और मोक्ष को प्रगट करने योग्य जानता है । औदयिकभाव अर्थात् आस्रव-वध को हेयरूप जानता है । इस प्रकार ज्ञानियो को तो मात्र भावना अपने ज्ञायक निज की ही वर्तती हैं और की नही वर्तती है। प्रश्न ५४-मोक्षमार्ग शब्द में 'मार्ग' का क्या अर्थ है ? उत्तर-मार्ग अर्थात् रास्ता। प्रश्न ५५-अज्ञानी मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्ष का रास्ता कहाँ खोजता है? उत्तर-जैसे-हिरन की नाभि मे कस्तूरी है । वह बाहर खोजता है, उसी प्रकार अज्ञानी बाहरी क्रियाओ मे, विकारी भावो मे मोक्षमार्ग खोजता है। प्रश्न ५६- बाहरी क्रियाओ में और शुभभावो में जो मोक्षमार्ग मानता है, उसे जिनवाणी में क्या-क्या कहा है ? उत्तर-(१) श्री समयसार मे नपुसक, व्यभिचारी, मिथ्यादृष्टि,
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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