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________________ ( ७६ ) उत्तर-आत्मा का अधिकार अपने अनन्त गुणो के पिण्ड ज्ञायक भाव पर ही है और नौ प्रकार के पक्षो पर अधिकार नहीं है। प्रश्न ४६-शरीर मे बीमारी आ जावे, लडका मर जावे, धन नष्ट हो जावे, चला न जावे, तो हम क्या करें जिससे शान्ति की प्राप्ति हो? उत्तर-जो सिद्ध भगवान करते हैं वह हम करे तो शान्ति की प्राप्ति हो । जैसे-होस्पिटल मे ५० मरीज मर जावे, तो क्या डाक्टर रोवेगा? आप कहोगे नहो, परन्तु जानेगा और देखेगा। क्योकि इन पर मेरा अधिकार नही है, उसी प्रकार शरीर मे विमारी आवे, स्त्री मर जावे, धन नष्ट हो जावे, लो जानो इन पर हमारा अधिकार नही है ऐसा जाने-माने तो शान्लि आ जावेगी। उन पर अपना अधिकार मानेगा तो दुःखी होकर चारो गलियो मे घूमता हुआ निगोद मे चला जावेगा। प्रश्न ५०-आपने तो पूर्ण-अपूर्ण शुद्ध पर्याय पर भी अपना अघिकार माने तो चारो गतियो में धमकर निगोद मे चला जावेगाऐसा कहा है। जबकि ज्ञानी तो शुद्ध पर्याय पर ही अपना अधिकार मानते हैं ? उत्तर-चौथे गुणस्थान से लेकर सब ज्ञानी एकमात्र अपने त्रिकाली भगवान पर ही अपना अधिकार मानते हैं । अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्याय पर भी ज्ञानी अपना अधिकार नही मानते हैं। पर और विकारी भावो की तो बात ही नही है। प्रश्न ५१-पूर्ण-अपूर्ण शुद्ध पर्याय के आश्रय से मेरा भला हो, ऐसा मानने वाला कौन है ? उत्तर-मिथ्यादृष्टि है और वह चारो गतियो मे घूम कर निगोद का पात्र है। प्रश्न ५२-ज्ञानियों को औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भाव जो धर्मरूप है, क्या उनकी भावना नही होती है ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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