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________________ ( ६२ ) प्रश्न १६७ - स्याद्वाद अनेकान्त के विषय मे समयसार कला २७३ में क्या बताया है ? उत्तर- ( १ ) पर्यायदृष्टि से देखने पर आत्मा अनेकरूप दिखाई देता है और द्रव्यदृष्टि से देखने पर एकरूप । (२) क्रमभावी पर्यायदृष्टि से देखने पर क्षणभंगुर दिखाई देता है और सहभावी गुणदृष्टि से देखने पर ध्रुव । ( ३ ) ज्ञान की अपेक्षा वाली सर्वगत दृष्टि से देखने पर परम विस्तार को प्राप्त दिखाई देता है और प्रदेशों की अपेक्षा वाली दृष्टि से देखने पर अपने प्रदेशो मे ही व्याप्त दिखाई देता है । ऐसा द्रव्य पर्यायात्मक अनन्नधर्म वाला वस्तु का स्वभाव है। 20 प्रश्न १६८ - अनेकान्त - स्याद्वाद के विषय मे समयतार कलश २७४ मे क्या बताया है ? उत्तर- ( १ ) एक ओर से देखने पर कपायो का क्लेश दिखाई देता है और एक ओर से देखने पर शान्ति (कपायो का अभावरूप गान्तभाव ) दिखाई देता है । (२) एक ओर से देखने पर परभाव की (सासारिक) पीडा दिखाई देती है और एक ओर से देखने पर (ससार के अभावरूप) मुक्ति भी स्पर्श करती है । (३) एक ओर से देखने पर तीनो लोक दिखाई देता है और एक ओर से देखने पर केवल एक चैतन्य हो शोभित होता है । ऐसी आत्मा की अद्भुत से भी अद्भुत स्वभाव महिमा जयवन्त वर्तती है । प्रश्न १६६ -- समयसार कलश २७३ तथा २७४ मे अज्ञानी क्या मानता है और ज्ञानी क्या मानता जानता है ? उत्तर - अहो, "आत्मा का यह सहज वैभव अद्भुत है ।" वह स्वभाव अज्ञानियों के ज्ञान मे आश्चर्य उत्पन्न करता है कि यह तो असम्भव सी बात है । ज्ञानियो को वस्तु स्वभाव मे आश्चर्य नही होता फिर भी उन्हे कभी नही हुआ ऐसा अभूतपूर्व - अद्भुत परमानन्द होता है, और आश्चर्य भी होता है । अहो | यह जिनवचन महा उपकारी है, वस्तु के यथार्थ स्वरूप को बताने वाले है, मैंने अनादि काल से ऐसे
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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