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________________ ( ५२ ) वतलाने वाला है। और अनेकान्त वस्तु स्वरूप है द्योत्य है, बताने योग्य है। प्रश्न १५१-धोत्य और द्योतक सम्बन्ध समझ में नहीं आया कृपया जरा स्पष्ट कीजिये ? उत्तर-आत्मा स्व की अपेक्षा से अस्ति है और पर की अपेक्षा से नास्ति है। यह अस्ति-नास्ति दोनो धर्म एक साथ पाये जाते हैं परन्तु कथन दोनो का एक साथ नही हो सकता है। जैसे आत्मा स्व की अपेक्षा से है ऐसा कथन किया, वहाँ आत्मा पर की अपेक्षा नहीं है यह नहीं कहा गया, परन्तु गौण हो गया-ऐसी कथन शैली को स्याद्वाद कहते है, इसलिए अनेकान्त को द्योत्य और स्याद्वाद को द्योतक कहते प्रश्न १५२-~चोत्य-द्योतक सम्बन्ध कब है ? उत्तर-वस्तु मे अनेक धर्म है। जव एक धर्म का कथन किया जावे, दूसरा धर्म गौण होवे तब द्योत्य-द्योतक सम्बन्ध है। प्रश्न १५३-सप्तभंगी कंमे प्रगट होती है ? उत्तर-जिसका कथन करना है उस धर्म को मुख्य करके उसका कथन करने से और जिसका कथन नही करना है उस धर्म को गीण करके उसका निषेध करने से सप्तभगी प्रगट होती है। प्रश्न १५४-सप्तसगी कितने प्रकार की है ? उत्तर-दो प्रकार की है। नय सप्तभगी और प्रमाण सप्तमगी। प्रश्न १५५-नय सप्तभंगी और प्रमाण सप्तभंगी किसे कहते हैं और इनका वर्णन कहां किया है ? उत्तर-वक्ता के अभिप्राय को एक धर्म द्वारा कथन करके बताना हो तो उसे नय सप्तभगी कहते हैं। और वक्ता के अभिप्राय को सारे वस्तु स्वरूप द्वारा कयन करके बताना हो तो प्रमाण सप्तभगी कहते है। प्रवचनसार मे नय सप्तभगी का और पचास्तिकाय मे प्रमाण सप्तभगी का कथन किया है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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