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________________ उत्तर-स्यात् = कथचित किसी प्रकार से, किसी सम्यक् अपेक्षा से, वाद - कथन करना। प्रश्न १४५-स्यादवाद कैसा है ? उत्तर-अनन्त धर्मों वाला द्रव्य है। उसे एक-एक धर्म का जान करके विवक्षित (मुख्य) अविवक्षित (गौण) की विधि निषेध द्वारा प्रगट होने वाली सप्तभगी सतत् सम्यक् प्रकार से कथन किये जाने वाले "स्यात्" कार रूपी अमोघ मत्र द्वारा "हो" मे भरे हुए सर्व विविध विषय के मोह को दूर करता है। प्रश्न १४६ -स्यादवाद को स्पष्ट कीजिए? उत्तर-एक ही पदार्थ कथचित् स्वचतुष्टय की अपेक्षा से अस्ति रूप है। कयचित् परचतुष्टय की अपेक्षा से नास्तिरूप है। कथचित , समुदाय की अपेक्षा से एकरूप है । कथचित् गुण-पर्याय की अपेक्षा से अनेकरूप है । कथचित् सत् की अपेक्षा से अभेदरूप है। कथचित् द्रव्य अपेक्षा से नित्य है। कयचित् पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है । कथचित् नय अपेक्षा से वस्तु स्वभाव का कथन करना उसे स्याद्वाद कहते है। प्रश्न १४७---स्यात्-पद क्या बताता है और क्या नहीं बताता है ? उत्तर-स्यात-पद अविवक्षित धर्मों का गौणपना बताता है, परन्तु अविवक्षित धर्मों का अभाव करना नहीं बताता है। प्रश्न १४८-स्यावाद और अनेकान्त मे कैसा सम्बन्ध है ? उत्तर-द्योत्य-द्योतक सम्बन्ध है, वाच्य-वाचक सम्बन्ध नहीं है। प्रश्न १४६-वाच्य-वाचक सम्बन्ध किसे कहते हैं ? उत्तर-जैसा शब्द हो, वैसा ही पदार्थ हो उसे वाच्य-वाचक सम्बन्ध कहते हैं। जैसे-शक्कर शब्द हुआ यह वाचक है, शक्कर पदार्थ वाच्य है। और जैसे-गुरु ने कहा आत्मा तो यह वाचक है और आत्मा पदार्थ दृष्टि मे आवे वह वाच्य है। प्रश्न १५०-धोत्य-घोतक सम्बन्ध किसमें होता है ? उत्तर-स्याद्वाद और अनेकान्त मे होता है । स्यादवाद द्योतक,
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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