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________________ ( २१ ) और (३) जिसने समस्त नयो द्वारा प्रकाशित जो वस्तु का स्वभाव है, उसके विरोध को नष्ट कर दिया है। मैं उस अनेकान्त को अर्थात् एक पक्ष रहित स्याद्वादरूप भाव श्रुतज्ञान को नमस्कार करता हूँ ऐसा कहा है। प्रश्न ८-अनेकान्त-स्याद्वाद परमागम का जीवन क्यो है ? उत्तर-जगत का प्रत्येक सत् अनेकान्तरूप है। अस्ति-नास्ति, तत्-अत्तत, नित्य-अनित्य, एक-अनेक आदि युगलो से गुंथित है। जब पदार्थ ही स्वत सिद्ध अनेकान्तरूप है, तो उसको जानने वाला वही ज्ञान प्रणाम कोटि मे आ सकता है कि जो अनेकान्त को अनेकान्तरूप ही जाने । इसलिए अनेकान्त स्याद्वाद को परमागम का जीवन कहा है एक काल में देखिये अनेकान्त का रूप। एक वस्तु मे नित्य ही विधि निषेध स्वरूप ॥ प्रश्न :--अनेकान्त-स्यावाद को समझने समझाने की क्या आवश्यकता है ? उत्तर-अज्ञानियो मे अनादिकाल से एक-एक समय करके जो पर पदार्थों मे, शुभाशुभ विकारी भावो मे कर्ता-भोक्ता की खोटी बुद्धि है, उसका अभाव करने के लिए और अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति के निमित्त अनेकान्त-स्याद्वाद को समझने-समझाने की आवश्यकता है। प्रश्न १०-अनेकान्त किसे कहते हैं ? उत्तर-प्रत्येक वस्तु मे वस्तुपने की सिद्धि करने वाली अस्तिनास्ति आदि परस्पर विरुद्ध दो शक्तियो का एक ही साथ प्रकाशित होना-उसे अनेकान्त कहते हैं। प्रश्न ११–प्रत्येक वस्तु मे किस-किस का ग्रहण होता है ? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य का, प्रत्येक गुण का, प्रत्येक पर्याय का, प्रत्येक अविभाग प्रतिच्छेद का ग्रहण होता है। प्रश्न १२-अनेकान्त की व्याख्या मे 'आदि' शब्द आया है, उससे क्या-क्या समझना?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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