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________________ ( २० ) प्रश्न ४-नाटक समयसार मे जैन मत का मूल सिद्धान्त क्या है, जिससे जीव संसार से पार होते हैं ? उत्तर-स्याद्वाद अधिकार अब, कहीं जैन को मूल । जाके जानत जगत जन, लहें जगत-जल-फूल ।। अर्थ-जनमत का मूल सिद्धान्त 'अनेकान्त स्याद्वाद' है। जिसका ज्ञान होने से जगत के मनुष्य ससार-सागर से पार होते हैं। प्रश्न ५-अनेकान्तमयो जिनवाणी का स्वरूप, श्री प्रवचनसार कलश दो में क्या बताया है ? उत्तर-"जो महामोहरूपी अन्धकार समूह को लीलामात्र मे नष्ट करता है । और जगत के स्वरूप को प्रकाशित करता है । वह अनेकान्तमय ज्ञान सदा जयवन्त रहो" ऐसा बताया है। प्रश्न ६-समयसार कलश दो मे प० जयचन्द्र ने सरस्वती की अनेकान्तमयी सत्यार्थमति किसे कहा है ? उत्तर-"सम्यग्ज्ञान ही सरस्वती की सत्यार्थ मूर्ति है। उसमे भी सम्पूर्ण ज्ञान तो केवलज्ञान है, जिसमे समस्त पदार्थ प्रत्यक्ष भासित होते हैं। केवलज्ञान अनन्तधर्म और गुणसहित आत्मतत्व को प्रत्यक्ष देखता है, इसलिये वह सरस्वती की मूर्ति है और केवलज्ञान के अनुसार जो भावश्रुतज्ञान है वह आत्मतत्व को परोक्ष देखता है-इसलिए भावश्रुतज्ञान भी सरस्वती की मूर्ति है। द्रव्यश्रुत-वचनरूप है, वह भी निमित्तरूप उसकी मूर्ति है, क्योकि वह वचनो के द्वारा अनेक धर्म वाले आत्मा को बतलाती है इस प्रकार समस्त पदार्थों के तत्व को बताने वाली सम्यग्ज्ञानरूप (उपादान) तथा वचनरूप (निमित्त) अनेकान्तमयी सरस्वती की मूर्ति है" । प्रश्न ७-पुरुषार्थसिद्धयुपाय के दूसरे श्लोक मे कैसे अनेकान्त को नमस्कार किया है ? उत्तर-(१) जो परमागम का जीवन है (२) जिसने अन्य एकान्त मतियो की भिन्न-भिन्न एकान्त मान्यताओ का खण्डन कर दिया है
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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