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________________ ( 272 ) उत्पकर्पण होना, पाप का आकर्षण होना, पाप का पुण्य रूप सक्रमण [वदलना] गुण है। प्रश्न २७६--दोष क्या-क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व का सर्वथा नाश या भांशिक हानि होना, सवर निर्जरा का सर्वथा नाश या हानि होना, पाप का बन्धना, पाप का उत्पकर्पण होना, पुण्य का अपकर्षण होना, पुण्यप्रकृति का पाप प्रकृति मे बदलना दोष है। प्रश्न २८०---राग और उपयोग मे किन कारणो से भिन्नता है ? उत्तर-राग औदयिक भाव है। उपयोग क्षयोपशमिक भाव है। राग चारित्रगुण की विपरीत पर्याय है। उपयोग ज्ञानगुण की क्षयोपशम रूप पर्याय है। राग चारित्रमोह के उदय से होता है-उपयोग ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होता है। राग का अनुभव मलीनता रूप है-ज्ञान का अनुभव स्वभाव रूप [जानने रूप] है। राग से बन्ध ही होता है / उपयोग से बन्ध नही ही होता है। इसलिए प्रत्येक मे दोनो स्वतन्त्र रूप से पाये जाते हैं अर्थात् हीनाधिक पाये जाते हैं या ज्ञान तो पाया जाता है पर राग नहीं पाया जाता। ये दृष्टान्त इनकी भिन्नता को सिद्ध करते है। सातवें भाग का सार प्रश्नोत्तर प्रश्न २८१-आत्मा के असाधारण भाव कितने हैं ? उत्तर-पाँच-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक / भाव तो असख्यातलोकप्रमाण हैं पर ज्ञानियो ने जाति के अपेक्षा बहुत मोटे रूप से इन 5 भेदो मे विभक्त कर दिये हैं। इनके मोटे प्रभेद [अवान्तर भेद] 53 है / / प्रश्न २८२-असाधारण भाव किसे कहते हैं ? उत्तर-असाधारण का अर्थ तो यह है कि ये भाव आत्मा मे ही
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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