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________________ ( 216 ) प्रश्न १५३–नयाभासो के कुछ दृष्टांत बताओ? उत्तर-(१) शरीर को जीव कहना (2) द्रव्य कर्म नोकर्म का कर्ता-भोक्ता आत्मा को कहना (3) घर धन धान्य स्त्री पुत्रादि वाह्य पदार्थों का कर्ता-भोक्ता जीव को कहना (4) ज्ञान को ज्ञेयगत या ज्ञेय को ज्ञानगत कहना इत्यादि / दो द्रव्य मे कुछ भी सम्बन्ध मानना नयाभास है। प्रश्न १५४-व्यवहार नयो के नाम बताओ? उत्तर–प्रत्येक द्रव्य मे जितने गुण हैं। उनमे हर एक गुण को भेद रूप से विषय करने वाली उसी नाम की नय है। जितने एक वस्तु मे गुण हैं उतनी नय हैं / ये शुद्ध द्रव्य को जानने का तरीका है। जैसे आत्मा के अस्तित्व गुण को बताने वाली अस्ति नय ज्ञान गुण को बताने वाली ज्ञान नय। प्रश्न १५५-उपर्युक्त नयो के पहचानने का क्या तरीका है ? उत्तर-विशेषण विशेष्य रूप से उदाहरण सहित जितना भी कयन है वह सब व्यवहार नय है यही इसके जानने का गुर है। प्रश्न १५६-निश्चय नय का लक्षण क्या है ? उत्तर-जो व्यवहार का प्रतिषेधक हो, वह निश्चय नय है / 'नेति' से इसका प्रयोग होता है / यह उदाहरण रहित है। प्रश्न १५७-व्यवहार प्रतिषेव्य क्यो है ? उत्तर-क्योकि वह मिथ्या विषय का उपदेश करता है। वह इस प्रकार द्रव्य मे गुण पर्यायो के टुकडे करता है जैसे परशु से लकडी के टुकडे कर दिये जाते हैं किन्तु द्रव्य अखण्ड एक है उसमे ऐसे टुकडे नही हैं। अत व्यवहार नय मिथ्या है / व्यवहार नय के कथनानुसार श्रद्धान करने वाले मिथ्या दृष्टि हैं। प्रश्न १५८-जब वह मिथ्या है तो उसके मानने की आवश्यकता ही क्या है ? उत्तर-निश्चय नय अनिर्वचनीय है। अत वस्तु समझने समझाने
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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