SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 216 ) प्रश्न 140 सद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल बताओ? उत्तर--विवक्षित किसी द्रव्य के गुणो को उसी द्रव्य मे भेद रूप से प्रवृत्ति कराने वाले नय को सद्भूतव्यवहार नय कहते हैं। सत् का असाधारण गुण इसकी प्रवृत्ति मे कारण है / एक वस्तु का अस्तित्व दूसरी वस्तु से सर्वथा भिन्न है तथा प्रत्येक वस्तु पूर्ण स्वतन्त्र और स्वसहाय है ऐमा भेद विज्ञान होना इसका फल है / (525 से 528) प्रश्न १४१-~-असद्भुत व्यवहार नय का लक्षण, कारण, फल और दृष्टान्त वताओ? उत्तर-मूल द्रव्य मे वैभाविक परिणमन के कारण जो एक द्रव्य के गुण दूसरे द्रव्य मे सयोजित करना असद्भुत व्यवहार नय का लक्षण है। उसकी वैभाविक शक्ति की उपयोगता इसका कारण है। विभाव भाव क्षणिक है / उसको छोडकर जो कुछ बचता है वह मूल द्रव्य है। ऐसा मानकर सम्यग्दृष्टि होना इसका फल है पुद्गल के क्रोध को जीव का क्रोध कहना यह इसका दृष्टात है। (526 से 533) प्रश्न १४२-अनुपपरित सद्भुत व्यवहार नय का लक्षण, उदाहरण तथा फल बताओ ? उत्तर-जिस सत् मे जो शक्ति अन्तर्लीन है। उसको उसी की पर्याय निरपेक्ष केवल गुण रूप से कहना अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है जैसे जीव का ज्ञान गुण / इससे द्रव्य की त्रिकाल स्वतन्त्र सत्ता का परिज्ञान होता है। (534 से 536) प्रश्न १४३----उपचरित सद्भूत व्यवहार नय का लक्षण, उदाहरण कारण और फल बताओ? उत्तर-अविरुद्धतापूर्वक किसी कारणवश किसी वस्तु का गुण उसी मे पर की अपेक्षा से उपचार करना उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है / अर्थ विकल्प ज्ञान प्रमाण है यह इसका उदाहरण है। बिना पर के स्वगुण उपचार नहीं किया जा सकता यह इसकी प्रवृत्ति में
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy