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________________ ( 215 ) उत्तर-नित्य-अनित्य आदि विरुद्ध दो धर्म स्वरूप द्रव्य मे किसी एक धर्म का वाचक नय है जैसे सत् नित्य है, या सत अनित्य है अथवा अनन्त धर्मात्मक-वस्तु को देखकर उसके एक-एक धर्म का नाम रखना नय है जैसे ज्ञान दर्शन इत्यादिक / (504, 513) प्रश्न १३४-नय के औपचरिक भेद लक्षण सहित लिखो? उत्तर-(१) द्रव्य नय (2) भाव नय / पौलिक शब्दो को द्रव्य नय कहते हैं और उसके अनुसार प्रवृत्ति करने वाले विकल्प सहित जीव के श्रुतज्ञानाश को भाव नय कहते है। प्रश्न १३५-नय क्या करता है ? उत्तर-वस्तु के अनन्त धर्मों का भिन्न-भिन्न ज्ञान कराकर वस्तु को अनन्त धर्मात्मक सिद्ध करता है तथा उसका अनुभव करा देता है। (515) प्रश्न १३६-नयो के मूल भेद कितने हैं ? उत्तर-दो (1) द्रव्याथिक या निश्चय नय (2) पर्यायाथिक या व्यवहार नय। (517) प्रश्न १३७-द्रव्याथिक नय किसे कहते हैं और वे कितने हैं ? उत्तर-केवल अखण्ड सत् ही जिसका विपय है वह द्रव्याथिक है। यह एक ही होता है / इसमे भेद नहीं हैं। (518) प्रश्न १३८-पर्यायाथिक नय किसे कहते हैं ? उत्तर-अशो को पर्यायें कहते है। उन अशो मे से किसी एक विवक्षित अश को कहने वाली पर्यायाथिक नय है / प्रश्न १३६-व्यवहार नय का लक्षण, कारण और फल बताओ? उत्तर-अभेद सत् मे विधि पूर्वक गुण गुणो भेद करना व्यवहार नय है। साधारण या असाधारण गुण इसकी प्रवृत्ति मे कारण है। अनन्तधर्मात्मक एकधर्मी मे आस्तिक्य बुद्धि का होना इसका फल है क्योकि गुण के सद्भाव मे नियम से द्रव्य का अस्तित्व प्रतीति में आ जाता है। (522, 523, 524)
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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