SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 196 ) उत्तर-अस्ति नास्ति युगल को सत् असत् युगल भी कहते हैं। महासत्ता अवान्तरसत्ता युगल भी कहते है। सामान्य विशेष युगल भी कहते हैं, भेदाभेद युगल भी कहते हैं। इसका वर्णन प्रारम्भ मे 15 से 22 तक, मध्य मे 264 से 308 तक, अन्त मे 756 से 756 तक आया है। प्रश्न ७४-महासत्ता के नामान्तर बताओ? / उत्तर-महासत्ता, सामान्य, विधि, निरश, स्व, शुद्ध, प्रतिपेधक, निरपेक्ष, अस्ति, व्यापक / प्रश्न ७५-अवान्तर सत्ता के नामान्तर बताओ? उत्तर-अवान्तर सत्ता, विशेष, प्रतिषेध, साश, पर, अशुद्ध, प्रतिषेध्य, सापेक्ष, नास्ति, व्याप्य / प्रश्न ७६-द्रव्य से अस्ति नास्ति बताओ? उत्तर-वस्तु स्वभाव से ही सामान्यविशेपात्मक बनी हुई है / उसे सामान्य रूप से अर्थात् केवल सत् रूप से देखना महासत्ता और द्रव्य गुण पर्याय उत्पाद व्यय ध्रुव आदि के किसी भेद रूप से देखना अवान्तर सत्ता है। प्रदेश दोनो के एक ही है। स्वरूप दोनो का एक ही है। जिस दृष्टि से देखते हैं उसको अस्ति या मुख्य कहते हैं और जिस दृष्टि से नही देखते उसे नास्ति या गौण कहते है। जो वस्तु सत् रूप है वही तो जीव रूप है। (264 से 268 तक) प्रश्न ७७-क्षेत्र से अस्ति नास्ति बताओ? उत्तर-वस्तु स्वभाव से देश देशाश रूप बनी हुई है। प्रदेश वही है स्वरूप वही है। देश दृष्टि से देखना सामान्य दृष्टि है। इससे वस्तुओ मे भेद नही होता है। देशाग दृष्टि से देखना विशेष दृष्टि है। जिस दृष्टि से देखना हो वह क्षेत्र से अस्ति दूसरी नास्ति / जो वस्तु देश मात्र है वही तो विशेष देश रूप है जैसे जो देश रूप है वही तो असख्यात् प्रदेगी आत्मा है / (270 से 272 तक) प्रश्न ७८-काल से अस्ति नास्ति बताओ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy