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________________ ( 198 ) दृष्टि से पता चलता है कि यहाँ का जीव नष्ट हो गया। वहाँ न4 पैदा हुआ। यह प्रत्यक्ष अज्ञानी जगत की अतत् दृष्टि है। (4) आपको क्या यह अनुभव नहीं है कि आप सत् है। इससे वस्तु के सामान्य धर्म का परिज्ञान होता है। (B) पर आप जीव हैं पुद्गल तो नही इससे वस्तु विशेप भी है यह स्याल आता है। इस प्रकार वस्तु चार युगलो से गुम्फित है, यह सर्व साधारण को प्रत्यक्ष अनुभव होता है / यह जो हमने अनेकान्त का लाभ लिखा है यद्यपि यह विपय इस पुस्तक में नहीं है, इसमे तो केवल वस्तु का अनेकान्तात्मकता का परिनान कराया है, हमने चूलिका रूप मे मापकी अनेकान्त के मर्म को जानने की रुचि हो जाये इस ध्येय से सक्षिप्त रूप मे लिया है। अनेकान्त का विषय बहुत रूखा है, अत लोगो के समझने की रुचि नही होती तथा विवेचन भी पडिताई के ढग से बहुत कठिन किया जाता है जो समझ नहीं आता। हमने तो सरल देसी भाषा मे आपके हितार्थ लिखा है। श्री सद्गुरुदेव की जय / ओ शान्ति। 'अस्ति नास्ति युगल' (1) प्रश्न ७२-वस्तु की अनेकान्तात्मक स्थिति वताओ? उत्तर-प्रत्येक वस्तु स्यात् अस्ति नास्ति, स्यात् तत् अतत्, स्यात् नित्य अनित्य, स्यात् एक अनेक इन चार युगलो से गुंथी हुई है। इस का अर्थ यह है कि जो वस्तु द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से अस्ति रूप है वही वस्तु उसी समय द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से नास्ति रूप भी है तथा वही वस्तु इसी प्रकार अन्य चार युगल रूप भी है। एक दृष्टि से वस्तु का चतुष्टय निकाल एक रूप है / एक दृष्टि से वस्तु का चतुष्टय समय-समय का भिन्न-भिन्न रूप है। (262-263) प्रश्न ७३-~'अस्ति-नास्ति' युगल के नामान्तर बताओ ? इनका वर्णन कहाँ-कहीं आया है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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