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________________ ( 163 ) प्रश्न ६५-शास्त्रो में श्रुतज्ञान को परोक्ष कहा है आप प्रत्यक्ष कसे कहते हो? उत्तर-(१) श्रुतज्ञान प्रमाण परोक्ष है, नय भी परोक्ष है / स्वानुभूति मे मन की, राग की अथवा पर की अपेक्षा नही होती है। इसलिए स्वानुभूति प्रत्यक्ष है। (2) असख्य प्रदेशी सम्पूर्ण आत्मा जानने मे मही आता इसलिए मति-श्रुतज्ञान को परोक्ष कहा है। अनुभव तो स्वय स्वत से भोगता है इस अपेक्षा प्रत्यक्ष ही है। (3) केवलज्ञानी की तरह जैसे असख्यात प्रदेशो सहित सम्पूर्ण आत्मा को सीधा नहीं जानता होने की अपेक्षा मति-श्रुतज्ञान को परोक्ष कहा है। प्रश्न ६६--शुद्ध पर्याय को असत् क्यो कहा जाता है ? उत्तर-(१) जैसे अपनी आत्मा की अपेक्षा पर द्रव्य अनात्मा है वैसे ही त्रिकाली द्रव्य की अपेक्षा पर्याय असत है। क्योकि त्रिकाली ध्र व द्रव्य से प्रगट शुद्ध पर्याय भिन्न हैं। इसलिए असत् है। प्रश्न ६७-शुद्ध पर्याय असत् है ऐसा कोई शास्त्र का प्रमाण है ? उत्तर- (1) समयसार गा० 46 की टीका मे लिखा है कि व्यक्तता (शुद्ध पर्याय) अव्यक्तता (त्रिकाली द्रव्य) एकमेक मिश्रितरूप से प्रतिभापित होने पर भी वह (द्रव्य) व्यक्तता को (शुद्धपर्याय को) स्पर्श नहीं करता है" / तथा प्रवचनसार गाथा 172 मे अलिंग-ग्रहण के १६वें बोल मे कहा है कि "पर्याय को द्रव्य स्पर्शता नही है" यह प्रमाण है। प्रश्न ६८-ज्ञायक भाव तो स्वभाव की अपेक्षा अनादि से ऐसा का ऐसा ही है। परन्तु "विकल्प वह मैं" ऐसे मिथ्याभाव की आड़ में वह सहज स्वभाव दृष्टि में नहीं आता-इसलिए ज्ञायफ भाव तिरोभूत हो गया है / इस बात को दृष्टान्त द्वारा समझाइये ? उत्तर-जैसे-नजर के आगे टेढी अगुली करने पर सम्पूर्ण समुद्र दिखता नही, इसलिए देखने वाले के लिए समुद्र तिरोभूत हो गया है ऐसा कहा जाता है। दृष्टि मे नही आता इसलिए तिरोभाव कहा है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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