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________________ ( 147 ) तमाम जिन्दगी हीरे परखने मे ही बितायी, अब आखरी वक्त आया है / तब भी तुम्हे यह नही सूझता कि मैं अपने चैतन्य हीरे की पहिचान कर लूं। इतना सुनते ही जौहरी की आत्मा जाग उठी और दिवान जी का उपकार माना। जब दिवान जी ने इनाम माँगने को कहा तो जौहरी ने कहा, कल मांगूंगा। अगले दिन जौहरी ने राजा से कहा, मैं इनाम के लायक नही हूँ। यदि आप इनाम देना ही चाहते हैं तो मेरे सिर पर सात जूते लगवाओ, क्योकि मैंने अपने चैतन्य हीरे की पहिचान ना की और तमाम उम्र हीरो की पहिचान मे ही विताई। उसी प्रकार सर्वज्ञ राजा के दिवान के रूप मे पूज्य गुरुदेव कहते है कि अरे जीव | बाहर के पदार्थों के जानने मे अनन्तकाल गमाया और अनन्तशक्ति सम्पन्न अपने चैतन्य हीरे की पहिचान ना की। तो जौहरी की भाँति तू सात जूतो के लायक है। इसलिए हे भव्य / तू जाग और अपने चैतन्य हीरे की अमूल्य महिमा है, ऐसा जानकर तत्काल धर्म की प्राप्ति कर। प्रश्न १५-हमे तो ज्ञान का अल्प उघाड़ है। इस कम ज्ञान के उघाड मे चैतन्य हीरे की पहिचान कैसे की जाती है हमे तो ऐसा उपाय बताओ जिससे कम उघाड मे चैतन्य हीरे की पहिचान हो जावे? उत्तर-भगवान की वाणी मे आया है कि प्रत्येक सज्ञी पचेन्द्रिय जीव को इतना तो ज्ञान का उघाड है ही, कि उस ज्ञान के सम्पूर्ण उघाड को अपने चैतन्य हीरे की तरफ लगा दे, तो तत्काल सम्यग्दर्शनादिक की प्राप्ति होकर क्रम से मोक्ष का पथिक बने / जैसे-वम्बई के बाजार मे एक होलसेल खिलौनो की दुकान थी। उस खिलौनो की दुकान के सामने एक लडका एक खिलौने को देख-देखकर प्रसन्न हो रहा था। व्यापारी ने लडके से पूछा, क्या चाहिए ? लडके ने खिलौने के लिए इशारा किया / व्यापारी ने कहा, इसकी कीमत पाँच रुपया है / लडके ने कहा, मेरे पास तो कुल दस पैसा है। दुकानदार ने प्रसन्न होकर दस पैसा लेकर खिलौना दे दिया, लडका बहुत प्रसन्न
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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