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________________ ( 142 ) करने पर ऐसा जीव मिथ्यादृष्टि है। कर्म बन्ध को करता है, कोई भलापन तो नहीं है। [समयसार कलश टीका कलश न० 101] (2) शुभभाव से सवर-निर्जरा मानने वाले को समयसार गा० 154 मे 'नपुंसक' कहा है और गा० 156 मे अज्ञानी लोग व्रत-तपादि को मोक्ष हेतु मानते है उसका निषेध किया है। प्रश्न ३-शुभ-अशुभ क्रिया आदि बंध का ही कारण है मोक्ष का कारण नहीं है ऐसा श्री राजमल्ल जी ने कहीं कुछ कहा है ? उत्तर-(१) “जो शुभ-अशुभ क्रिया, सूक्ष्म-स्थूल अन्तर्जल्प बहिर्जल्प रूप जितना विकल्परूप आचरण है वह सब कर्म का उदयरूप परिणमन है जीव का शुद्ध परिणमन नहीं है इसलिए समस्त ही आचरण मोक्ष का कारण नहीं है, बन्ध का कारण है।" (2) "यहाँ कोई जानेगा कि शुभ-अशुभ क्रिया रूप जो आचरण रूप चारित्र है सो करने योग्य नही है, उसी प्रकार वर्जन करने योग्य भी नही है ? उत्तर दिया है वर्जन करने योग्य है। कारण कि व्यवहार चारित्र होता हुआ दुष्ट है, अनिष्ट है, घातक है, इसलिए विषय-कषाय के समान क्रिया रूप चारित्र निषिद्ध है।"[कलग टीका कलश न०१०७ तथा 108] प्रश्न ४-श्री राजमल जी ने कलश टीका कलश नं० 102 मे लिखा है कि "शुभ कर्म के उदय में उत्तम पर्याय होती है। वहाँ धर्म को सामग्री मिलती है, उस धर्म की सामग्री से जीव मोक्ष जाता है इसलिए मोक्ष की परिपाटी शुभ कर्म है" वह क्यो लिखा ? उत्तर-अरे भाई तुमने प्रश्न को भी अच्छी तरह नही पढा ऐसा लगता है, क्योकि इस प्रश्न को पूरे करने से पहले लिखा है "ऐसा कोई मिथ्यावादी मानता है और उसको उत्तर दिया है 'कोई कर्म शुभ रूप, कोई कर्म अशुभ रूप ऐसा भेद तो नहीं है . * . ऐसा अर्थ निश्चित हुआ। प्रश्न ५-क्या मोक्षार्थो को जरा भो राग नहीं करना चाहिए? उत्तर-~(१) "मोक्षार्थी को सर्वत्र किंचित् भी राग नहीं करना
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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