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________________ ( 141 ) मोक्षमार्ग सम्बन्धी प्रश्नोत्तर चौथा अधिकार प्रश्न १-अशुभकर्म बुरा, शुभकर्म अच्छा यह मान्यता कैसी है ? उत्तर—यह मान्यता अनन्त ससार का कारण है (1) क्योकि "जैसे अशुभ कर्म जीव को दुख करता है। उसी प्रकार शुभ कर्म भी जीव को दुख करता है। कर्म मे तो भला कोई नही है। अपने मोह को लिए हुए मिथ्यादृष्टि जीव कर्म को भला करके मानता है। (समयसार कलश टीका कलश न 100) (2) "शुभ अशुभ बध के फल मझार, रति अरति करै निजपद विसार" छहढाला मे भी लिखा है। जिसको अपना पता नही ऐसा मिथ्यादृष्टि शुभ अच्छा, अशुभ बुरा मानता है। (3) जो शुभ-अशुभ मे अन्तर मानता है वह जीव घोर अपार ससार मे भ्रमण करता है। [प्रवचनसार गा० 77] (4) पुरुषार्थसिद्धयुपाय गा० 14 मे ऐसी मान्यता को ससार का बीज कहा है। प्रश्न २-शुभोपयोग भला, उससे (शुभोपयोग से) कर्म को निर्जरा होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है यह मान्यता कैसी है ? उत्तर-यह मान्यता श्वेताम्बरो की है और जो दिगम्बर धर्मी कहलाने पर शुभोपयोग से सवर, निर्जरा और मोक्ष मानते हैं वह दिगम्बर धर्म की आड मे श्वेताम्बर मत की पुष्टि करने वाले ससार के पात्र है। (1) "कोई जीव शुभोपयोगी होता हुआ यति क्रिया मे मग्न होता हुआ शुद्धोपयोग को नही जानता, केवल यति क्रिया मात्र मग्न है। वह जीव ऐसा मानता है कि मैं तो मुनीश्वर, हमको विषय-कषाय सामग्री निषिद्ध है। ऐसा जानकर विषय कषाय सामग्री को छोडता है, आपको धन्यपना मानता है, मोक्षमार्ग मानता है सो ऐसा विचार
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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