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________________ ( 133 ) प्रकृति को पुण्य प्रकृति का आरोप आता है। वैसे मोहनीय पापप्रकृति ही है पुण्य प्रकृति नही है। प्रश्न १८०-अघाति कर्मों में कौन-कौन सी अवस्था होती है ? उत्तर-उदय और क्षय ये दो अवस्थायें होती हैं। प्रश्न १८१-अघाति कर्मों का उदय कब से कब तक रहता है और क्षय कब होता है ? ___ उत्तर-पहले गुणस्थान से लेकर १४वें गुणस्थान तक उदय रहता है और चौदहवें गुणस्थान के अन्त मे अत्यन्त अभाव (क्षय) होता है। प्रश्न १८२-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्म में कितनी-कितनी अवस्थायें होती हैं ? उत्तर-तीन-तीन अवस्थायें होती हैं-क्षयोपशम, क्षय और उदय। प्रश्न १८३-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तरायकर्म में क्षयोपशम, क्षय और उदय कब से कब तक रहता है ? उत्तर-(१) १२वे गुणस्थान तक इनका क्षयोपशम है। (2) १२वें गुणस्थान तक जिस-जिस गुणस्थान मे जितनी-जितनी कमी है वह उदय है। (3) बारहवे गुणस्थान के अन्त मे इन तीनो की क्षय अवस्था होती है। प्रश्न १८४-मोहनीय कर्म में कितनी अवस्था होती हैं ? उत्तर-चार होती हैं उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम / प्रश्न १८५-मोहनीय कर्म का उदय-उपशम-क्षय और क्षयोपशम कौन-कौन से गुणस्थान में होता है ? उत्तर-मोहनीय कर्म मे-(१) चौथे से ११वें गुणस्थान तक उपशम हो सकता है। (2) चौथे से १०वें गुणस्थान तक क्षयोपशम हो सकता है। (3) चौथे से प्रारम्भ होकर १२वें गुणस्थान तक क्षय होता है (4) पहले से तीसरे गुणस्थान तक उदय रहता है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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