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________________ ( 131 ) प्रश्न १६८-वर्तमान में सोमन्धर भगवान में ना होवे और हमारे में होवे ऐसा कौन सा भाव है ? उत्तर-क्षायोपशमिक भाव है। प्रश्न १६६-वर्तमान में सीमन्धर भगवान में होवे और अपने मे अभी ना होवे, वह कौन सा भाव है ? उत्तर-क्षायिक भाव है। प्रश्न १७०-सीमन्धर भगवान में भी होवे और हमारे में भी होवे ऐसे कौन-कौन से भाव हैं ? उत्तर-औदयिक भाव और पारिणामिक भाव है। प्रश्न १७१-केवलज्ञान होने पर आत्मा मे से कौन सा भाव निकल जाता है ? उत्तर-क्षायोपशमिक भाव निकल जाता है। प्रश्न १७२--एक जीव अरहत से सिद्ध हुआ तो कौन सा भाव पृथक् हुआ उत्तर-औदयिक भाव पृथक् हुआ। प्रश्न १७३-भाव होने पर भी बंध ना हो क्या ऐसा हो सकता - उत्तर--(१) क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होने पर अभी कमी है परन्तु सम्यक्त्वमोहनीय का उदय होने पर भी सम्यक्त्व सम्बन्धी बन्ध नहीं होता है। (2) दसवें गुणस्थान मे सज्वलन लोभ कषाय होने पर और चारित्रमोहनीय सज्वलन के लोभ का उदय होने पर भी चारित्र सम्वन्धी बन्ध नहीं होता है। (3) १२वें गुणस्थान मे ज्ञान, दर्शन, वीर्य का क्षायोपशमिक भाव होने पर भी और ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय का क्षयोपशम होने पर भी बन्ध नहीं होता है। (4) १३वे और १४वें गुणस्थान मे असिद्धत्व औदयिक भाव हाने पर भी और अघाती कर्मों का उदय होने पर भी बन्ध नही होता है / यहाँ पर भाव होने पर भी इस-इस प्रकार का बन्ध नही होता है, क्योकि
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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