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________________ ( ११६ ) प्रश्न ५७ - ज्ञान- दर्शन - वीर्य गुण में औपशमिकभाव क्यो नहीं होता है ? उत्तर- इनका औपशमिक हो जावे तो केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि प्रगट हो जावे और कर्म सत्ता मे पड़ा रहे लेकिन ऐसा नही हो सकता है । इसलिए ज्ञान-दर्शन वीर्यगुण मे औपशमिक भाव नही होता है । प्रश्न ५८ - क्या मति, श्रुति, अवधि, मन पर्यय और केवलज्ञान पारिणामिक भाव हैं ? उत्तर- नही है, यह तो पाँच ज्ञान गुण की पर्याये है यह पारि-णामिक भाव नही है । प्रश्न ५६ - जीव मे विकार यह कौनमा भाव बताता है ? उत्तर- औदयिक भाव बताता है । प्रश्न ६० - विकार मे फर्म का उदय निमित्त होने पर भी कर्म विकार नहीं कराता है यह कौनसा भाव बताता है ? उत्तर- औदयिक भाव बताता है । प्रश्न ६१ - विकार होने पर भी ज्ञान, दर्शन, वीर्य का सर्वथा अभाव नहीं होता है यह कौनसा भाव बताता है ? उत्तर - क्षायोपशमिक भाव बताता है । प्रश्न ६२ - पात्रजीव अपने मानसिक ज्ञान में (१) मैं आत्मा हूँ और मेरे मे भगवानपने की शक्ति है। (२) विकार एक समय का औदयिकभाव है । ( ३ ) और मै अपने स्वभाव का आश्रय लूं तो कल्याण हो ऐसा निर्णय, कौनसा भाव बताता है ? उत्तर - अज्ञान दशा मे पात्र जीवो को ऐसा क्षायोपशमिक भाव बताता है । ? प्रश्न ६३- -धर्म की शुरूआत कौनसा भाव बताता है उत्तर- औपशमिक भाव, धर्म का क्षायोपशमिक भाव और श्रद्धा का क्षायिक भाव बताता है । ―
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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