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________________ ( ११२ ) उत्तर-२१ भेद है, ४ गति भाव; ४ कषाय भाव, ३ लिंग भाव, १ मिथ्यादर्शन भाव, १ अज्ञान भाव, १ असयमभाव, १ असिद्धत्व भाव, छह लेश्या भाव। प्रश्न २६-गति नाम का औदयिकभाव कितने प्रकार का है ? उत्तर-दो प्रकार का है। (१) जीव के गति विषयक मोहभाव जो बन्ध का कारण है वह औदयिक भाव है। (२) जीव मे सूक्ष्मत्व प्रतिजीवी गुण है उसका अशुद्ध परिणमन १४ वे गुणस्थान तक है वह नैमित्तिक है और अघाति कर्मों मे नामकर्म और नामकर्म के अन्तर्गत गतिकर्म तथा ऑगोपाग नामकर्म निमित्त है। यह औदयिक गति रूप जीव का उपादान परिणाम है जो बन्ध का कारण नहीं है। ___ गति नामकर्म के सामने जीव की मनुष्य आकारादि विभाव अर्थ पर्याय और विभाव व्यजन पर्याय मे स्थूलपने का व्यवहार ससार दशा तक चालू रहता है यह गति औदयिक भाव जोव मे है, जो चौदहवे गुणस्थान तक रहता है। याद रहे-अधाति के उदयवाला गति औदयिक भाव तो बन्ध का कारण नहीं है। परन्तु मोह ही गति औदयिक भाव वन्ध का कारण होने से हानिकारक है। प्रश्न ३०-मोहज गति औदयिकभाव मे निमित्त-नैमित्तिक क्या उत्तर- गति सम्बन्ध औदयिकभाव मिथ्यात्व राग-द्वेष रूप नैमित्तिक है और दर्शनमोहनीय का उदय निमित्त है। प्रश्न ३१-अघाति गति औदयिक भाव मे मोहज गति सम्बन्धी राग-द्वेष मिथ्यात्व को क्यो मिला दिया? उत्तर--मोह के उदय को गति के उदय पर आरोप करके निरूपण करने की आगम की पद्धति है। इसलिए चारो गतियो मे जो उस-उस गति के अनुसार मिथ्यात्व राग-द्वेषरूप भाव हैं-वे ही उस गति के औदयिकभाव हैं।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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