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________________ । १११ ) ३ अज्ञान [कुमति, कुश्रुत, कुअवधि] ३ दर्शन [चक्षु, अचक्षु, अवधि] ५ क्षायोपशमिक [दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य] १ क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, १क्षायोपशमिकचारित्र, १ सयमासयम। यह सब भाव सादिसान्त है। प्रश्न २५-१८ क्षायोपशमिक भाव किस-किस गुण की कौन-कौन सी पर्याय है? उत्तर-४ ज्ञान=यह ज्ञान गुण की एकदेश स्वभाव अर्थ पर्याये है। ३ अज्ञान = यह ज्ञानगुण की विभाव अर्थपर्यायें हैं। ३ दर्शन = यह दर्शन गुण की अर्थपर्याये हैं । दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य यह आत्मा मे पांच स्वतन्त्र गुण हैं। यह पांच स्वतत्र गुण एक देश स्वभाव अर्थ पर्याये है और अज्ञानी की विभाव अर्थ पर्यायें हैं। (१) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व-श्रद्धागुण की क्षायोपशमिक स्वभाव अर्थ पर्याय है। (२) क्षायोपशमिक सयम और सयमासयम चारित्रगुण की एकदेश स्वभाव अर्थ पर्यायें हैं। प्रश्न २६- यह क्षायोपशमिक भाव कौन-कौन से गुणस्थान मे पाये जाते हैं ? उत्तर-(१) ४ ज्ञान =चौथे से १२वें गुणस्थानों तक पाये जाते हैं । (२) ३ अज्ञान-पहले तीन गुणस्थानो मे पाये जाते हैं। (३) ३ दर्शन और ५ दानादिक=पहले से १२वें गुणस्थान तक पाये जाते हैं। (४) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व = चौथे से सातवें गुणस्थान तक पाया जाता है। (५) सयमासयम पाँचवे गुणस्थान में पाया जाता है। (६) क्षायोपशमिक सयम (चारित्र) छठे से दसवें गुणस्थान तक पाया जाता है। प्रश्न २७-औयिकभाव किसे कहते हैं ? उत्तर-कर्मों के उदय के साथ सम्बन्ध रखने वाला आत्मा का जो विकारीभाव होता है उसे औदयिक भाव कहते हैं। प्रश्न २८-औदयिकभाव के कितने भेद हैं ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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