SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८५ ) उत्तर-एक मात्र जीव द्रव्य चेतन है। प्रश्न (१५८ }- जीव को दो भेद रुप बांटो ? उत्तर-(१) संसारी और सिद्ध । (२) ज्ञानी और अज्ञानी । (३) केवलज्ञानी और (अल्पज्ञानी) प्रश्न (१५६।--ससारी कौन कौन हैं ? उत्तर-१४वें गुणस्थान तक ससारी हैं। प्रश्न (१६०)--सिद्ध कौन कौन हैं ? उत्तर-१४वें गुणस्थान से पार सब जीव सिद्ध कहलाते हैं । प्रश्न (१६१)-ज्ञानी कौन २ हैं ? उत्तर- 'सम्यग्दृष्टि सो ज्ञानी', इस अपेक्षा चौथे गुणस्थान से सिद्ध दशा तक सब ज्ञानी है। प्रश्न (१६२)--अज्ञानी कौन कौन हैं ? उत्तर-निगोद से लगाकर तीसरे गुण स्थान तक चारों गति के जीव अज्ञानी हैं क्योंकि मिथ्यादृष्टि सो अज्ञानी' । प्रश्न (१६३)-केवल ज्ञानी सो ज्ञानी कौन कौन जीव हैं ? उत्तर-१३, १४३, सिद्ध दशा वाले केवलज्ञानीजीव हैं ? प्रश्न (१६४)-प्रज्ञानी (अल्पज्ञानी) कौन कौन हैं ? उत्तर- 'अल्प ज्ञानी सो अज्ञानी' और केवलज्ञानी सो ज्ञानी इस अपेक्षा निगोद से लगाकर १२वे गुणस्थान तक गणधरादि सब अज्ञानी (अल्पज्ञानी) हैं।
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy