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________________ ( -१ ) प्रश्न ( १२६ ) -- अनत्य तादात्म्य सम्बंध को कर्ता-कर्म अधिकार में किस नाम से कहा है ? उत्तर -- संयोगसिद्ध सम्बंध के नाम से कहा है । प्रश्न (१२७ ) -- संयोगसिद्ध सम्बंध को तादात्म्यसिद्ध सम्बंध माने तो क्या होगा ? उत्तर - मिथ्यादर्शनादि दृढ़, होकर निगोद चला जावेगा । प्रश्न ( १२८ ) - सयोगसिद्ध सम्बंध अलग और निज कारण परमात्मा अलग ऐसा अनुभव करे तो क्या होगा ? उत्तर - (१) श्राश्रवों का अभाव हो जावेगा । (२) कर्मों का बध नहीं होगा । (३) सच्चे सुख की प्राप्ति हो जावेगी । (४) क्रम से निर्वाण की प्राप्ति होगी । प्रश्न ( १२६ ) - विकारी भावों के साथ अज्ञानी कैसा सम्बंध मानता है और उसका फल क्या है ? उत्तर - कर्ता - कर्म सम्बंध मानता है और उसका फल परम्परा निगोद है । प्रश्न (१३० ) - ऐसे द्रव्यों के नाम बताश्रो, जिसमें गुण ना हों ? उत्तर- ऐसा कोई भी द्रव्य नहीं है क्योंकि गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं । प्रश्न (१३१)-- गुणों को कौन नही मानता है ? उत्तर - श्वेताम्बर नही मानता है । प्रश्न (१३२ ) -- द्रव्य गुण भेद रुप हैं या अभेद रुप है ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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