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________________ ( ७६ ) उत्तर-गुणों का अभेद पिण्ड मैं हूं ऐसा अनुभव करते ही सम्पूर्ण दु.ख का अभाव होकर सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति हो जाती है इसलिए भगवान ने अनन्त गुणों के अभेद पिण्ड को अनुभव करने से प्रात्मा की महिमा बताई है। अनुभव करते ही “स हि मुक्त एव" ऐसा समयसार कलश १९८ में बताया है। प्रश्न (१०१)-जो जीव अणुव्रत है; महाव्रतादि की महिमा करता उसी में मग्न है उसका फल क्या है ? उत्तर- अनन्त संसार उसका फल है। प्रश्न (१०२)-आपने, गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं-यह __ बताया परन्तु द्रव्य में गुण किस प्रकार है ? उत्तर-(१) जैसे चीनी में मिठास है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं। (२) जैसे अग्नि में उष्णता है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं। (३) जैसे सोने में पीलापना है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं। (४) जैसे पुद्गल मे स्पर्शादि है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं। (५) जैसे नमक मे खारापना है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं। (६) जैसे कोयले में कालापना है वैसे ही द्रव्य में गुण हैं प्रश्न (१०३)--द्रव्य के साथ गुणों का कैसा सम्बन्ध है ? उत्तर-नित्यतादात्म्य सिद्ध सम्बन्ध है अर्थात् कभी भी तीन काल तीन लोक में अलग न होने वाला सम्बन्ध है। प्रश्न (१०४)-क्या जैसे घड़े में बेर हैं उसी प्रकार द्रव्य मे गुण है ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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