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________________ (५) मैं क्षमा वाला है इससे अपनी महिमा मानते हैं। (६) मैं अणुव्रत वाला हूँ इससे अपनी महिमा मानते हैं। (७) मैं महाव्रत वाला हूं इससे अपनी महिमा मानते हैं । (८) मैंने स्त्री पुत्रादि का त्याग किया है इससे अपनी महिमा मानते हैं। (8) मैं ऐलक, क्षुल्लक हूँ इससे अपनी महिमा मानते हैं। (१०) मैं मुनि आचार्य हूं इससे अपनी महिमा मानते हैं। (११) मैं महीनों उपवास करने वाला हूँ इससे अपनी महिमा मानते है। (१२) मैं परीषह सहने वाला हूं इससे अपनी महिमा मानते हैं। आदि अप्रयोजनभूत बातों से अपनी महिमा मानते हैं, और मैं अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड ज्ञायक भगवान हूं इससे अपनी महिमा नही मानते हैं । प्रश्न (१८)-रुपया पैसा प्रादि से अपनी महिमा मानने का क्या फल है ? उत्तर-चारों गतियों में घूमकर निगोद इसका फल हैं। प्रश्न (६६)-नौ प्रकार के पक्षों से अपनी महिमा मानने वाले कौन हैं ? उत्तर--संसार के भक्त हैं अर्थात् चारों गतियों में घूमते हुए निगोद के पात्र हैं। प्रश्न (१००)-भगवान ने गुणों के अभेद पिण्ड को अनुभव करने से ही आत्मा की महिमा क्यों बताई ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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