SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७३) उत्तर - अज्ञानी को विश्व में एक भी द्रव्य नहीं दिखता क्योंकि अपना अनुभव हुए बिना एक द्रव्य की भी जानकारी सच्ची नहीं है। । प्रश्न (८६-अज्ञानी को अपना अनुभव हुये बिना एक द्रव्य की भी जानकारी सच्ची नहीं है-यह कहाँ लिखा है ? उत्तर–समयसार कलश टीका कलश नं० १ तथा समयसार गा० २०१ में लिखा है। प्रश्न (९०)-अज्ञानी को सात तत्त्वों में से कितने तत्त्वों का ज्ञान है ? उत्तर-एक का भी नहीं, क्योंकि अपना अनुभव हुये बिना एक तत्त्व की जानकारी भी सच्ची नहीं है। प्रश्न (९१)-अज्ञानी का सात तत्त्वो का जानना कार्यकारी व सच्चा नहीं है तथा मिथ्यात्व है-यह कहाँ लिखा है ? उत्तर-समयसार कलश टीका कलश नं० ६ में लिखा है। प्रश्न (६२)-भगवान ने द्रव्य का स्वरुप पहले क्यों बताया ? उत्तर - अज्ञानी को अनादिकाल से एक एक समय करके मैं अनादिअनन्त अनन्तगुणो का अभेद पिण्ड द्रव्य हूँ-इसके सम्बंध में भूल होने के कारण भगवान ने पहले द्रव्य का स्वरुप बताया है। प्रश्न (६३)-अज्ञानी लोग द्रव्य किसे कहते हैं ? उत्तर- रुपया, सोना, चान्दी आदि को द्रव्य कहते हैं। प्रश्न (६४)--भगवान ने द्रव्य किसे कहा है ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy