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________________ ( ४१ प्रश्न ( १०४ ) - कहीं पूजा में भी प्राया है कि प्रत्येक पदाथ अपना अपना स्वतंत्र परिणमन करते हैं ? परिणति प्रभु, अपने अपने में उत्तर- "जड़ चेतन की सब होती है ॥ अनुकूल कहें प्रतिकूल कहें, यह झूठी मन की वृत्ति है । प्रश्न (१०५) - विश्व को जानसे से सातवाँ लाभ क्या रहा ? उत्तर -- ज्ञेय-ज्ञायक सम्बंध का सच्चा ज्ञान-विश्व को जानन से यह सातवां लाभ हुआ । प्रश्न (१०६) - विश्व को जानने से ज्ञेय-ज्ञायक के सच्चा ज्ञान का लाभ कैसे हुआ ? उत्तर - शास्त्रों में आता है "लोक्यन्ते दृश्यन्ते जीवादि पदार्था यत्र स लोकः " अर्थात् जहाँ जीवादि पदार्थ दिखाई देते हैं वह लोक है । प्रश्न (१०७ ) -- जैसा छह द्रव्यों का परिणमन होना है वैसा ही होगा उसमे जरा भी हेर फेर नहीं हो सकता ऐसा भगवान ने कहा है और वस्तु स्वरूप है तब प्रज्ञानी क्यों नहीं मानता ? उत्तर - चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना भच्छा लगता है इसलिए प्रज्ञानी नहीं मानता है। देखो कार्तिकेय अनुप्रेक्षा श्लोक ३२३ । प्रश्न (१०८) - छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहा है तो क्या व सब आपस में मिले हुए हैं ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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