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________________ ( ३० ) प्रश्न (७२)--प्राकाश द्रव्य लोक अलोक में रहता है यह बात साची है या झूठी है ? उत्तर - झूठी है. क्योंकि व्यवहारनय से कहा जाता है कि लोक अलोक में रहता है। प्रश्न (७३)-आकाशद्रव्य लोक अलोक में रहता है यह बात झूठी है तो साची बात क्या है ? उत्तर-आकाशद्रव्य अपने अनन्त प्रदेशों में रहता है यह बात साची है। प्रश्न (७४ --कालद्रव्य किसे कहते हैं ? उत्तर - जो अपनी-अपनी अवस्थारूप से स्वयं परिणमित होने वाले जीवादिक द्रव्यों को परिणमन में निमित्त हो उसे काल द्रव्य कहते हैं; जैसे कुम्हार के चाक को घूमने में लोहे को कीली। प्रश्न (७५)--काल के कितने भेद हैं ? उत्तर - निश्चयकाल और व्यवहार काल दो भेद हैं। प्रश्न (७६)-कोई कहे छहों द्रव्यों का परिणमन तो स्वय अपने अपने से होता है परन्तु मैं निमित्त तो हूं ना? उत्तर-छहों द्रव्यों का परिणमन स्वभाव है उसमें निमित्त है कालद्रव्य । लेकिन मिथ्यात्व के कारण अपने को निमित्त माननेवाला कालद्रव्य को उड़ाता है उस जीव ने अभिप्राय में काल द्रव्य को नहीं माना-यह भगवान की विराधना करनेवाला निगोद का पात्र है ।
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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