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________________ शुद्ध निश्चनय का माश्रय लेकर प्रभाव कर सकता है । (२) विकारी पर्याय पर्यायाथिकनय का विषय है, तो द्रव्याथिकनय का आश्रय लेकर अभाव कर सकता है (३) विकारी पर्याय पराश्रितो व्यवहार है, तो स्वाश्रितो निश्चय का आश्रय लेकर अभाव कर सकता हैं (४) विकारी पर्याय प्रौदयिकभाव है, तो पारिणामिक भाव का आश्रय लेकर प्रभाव कर सकता है (५) विकारी पर्याय अशुद्ध पारिणामिक भाव है तो परम शुद्ध पारिणामिक भाव का आश्रय लेकर उसका अभाव कर सकता है। इसलिए विकारी भविकारी पर्यायें स्वतंत्र है। प्रश्न (३६१)-जिससे सम्यग्दर्शन हो और फिर क्रम से मोक्ष हो, _ऐसे आठ बोलों में से पांचवा बोल क्या है ? उत्तर-"विकारी पर्याय को पराश्रित क्यों कहा है" यह पांचवा नाम है। प्रश्न (३६२)-विकारी पर्याय स्वतंत्र है तो शास्त्रों में _ विकारी पर्यायों को पराश्रित क्यों कहा है ? उत्तर-विकारी पर्याय स्वतंत्र होते हुए भी विकार में पर का निमित्त होता है इसलिए पर्याय को पराश्रित कहा है । पराश्रित कहने से 'पर से हमा है। ऐसा अर्थ मिथ्या है। प्रश्न (३६३)-विकारी पर्याय को पराश्रित कहा है यह किस शास्त्र में कहा है। उत्तर-परमात्म प्रकाश १७४ वें श्लोक पृष्ट ३१७ में लिखा है कि “यह प्रत्यक्ष भूत स्वसम्वेदन ज्ञानकर प्रत्यक्ष जो आत्मा, वही शुद्ध निश्चय कर अनन्त चतुष्टय स्वरुप, क्षुधादि १८ दोष रहित निर्दोष परमात्मा है तथा वह व्यवहारनय कर अनादि कर्म बंध के विशेष से पराधीन
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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