SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३१) उसे विभावव्यंजन पर्याय कहते हैं। जैसे जीव की नर नारकादि पर्यायें। प्रश्न (३८)-अर्थपर्याय के कितने भेद हैं ? उत्तर-दो हैं १) स्वभावमर्थपर्याय (२) विभावअर्थ पर्याय ! प्रश्न (३६)-स्वभावअर्थ पर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-पर निमित्त के सम्बंध रहित, प्रदेशत्व गुण को छोड़ कर बाकी गुणों की जो पर्यायें होती है, उसे स्वभावअर्थपर्याय कहते हैं। जैसे जीव के ज्ञान गुण की केवलज्ञान पर्याय । प्रश्न (४०)-विभावअर्थपर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-पर निमित्त के सम्बंध वाली प्रदेशत्व गुण को छोड़कर बाकी गुणों की जो पर्यायें होती हैं, उसे विभावअर्थ पर्याय कहते है । जैसे जीव के चारित्रगुण की रागद्वेषादि । प्रश्न (४१)-जीव और पुद्गल में कौन कौन सी पर्याय हो __सकती हैं ? उत्तर--चारों प्रकार की पर्यायें जीव और पुद्गल में हो सकती है । (१) स्वभावअर्थ पर्याय, (२) विभाव अर्थ पर्याय, (३) स्वभावव्यजन पर्याय, (४) विभाव व्यंजन पर्याय। प्रश्न (४२)-धर्म, अधर्म, प्राकाश और काल द्रव्यों में कोन कौन सी पर्यायें होती है ? उत्तर-इन चार द्रव्यों में मात्र स्वभावअर्थ पर्याय और
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy