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________________ ( १३० ) उत्तर-योगसार गा. ५३, में पाया है कि "शास्त्र पाठी भी मूर्ख है, जो निजतत्व अजान । यह कारण जीव ये पावे नहि निर्वाण ॥५३॥ यही बात समयसार गा० २७४ तथा ३१७ में बताई है। प्रश्न (३२)-पर्याय के कितने भेद है ? उत्तर-दो हैं-(१) व्यंजन पर्याय ( २) अर्थ पर्याय। प्रश्न (३३।-व्यंजन पर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-द्रव्य के प्रदेशत्व गुण के कार्य को व्यंजन पर्याय कहते हैं। प्रश्न (३४)-अर्थपर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-प्रदेशत्व गुण के अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण गुणों के विशेष __ कार्यों को अर्थ पर्याय कहते है। प्रश्न (३५)- व्यंजन पर्याय के कितने भेद है ? उत्तर-दो हैं (१) स्वभावव्यंजन पर्याय, (२) विभाव व्यंजन पर्याय प्रश्न (३६)-- स्वभावव्यांजन पर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर --पर निमित्त के सम्बंध रहित द्रव्य का जो साकार हो उसे स्वभावव्यंजन पर्याय कहते हैं। जैसे सिद्ध पर्याय का प्राकार। प्रश्न (३७) विभावव्यंजन पर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर-पर निमित्त के सम्बंध से द्रव्य का जो भाकार हो
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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