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________________ (११४) से हो जावे ऐसा नहीं है ; (४) दूसरे जीवों की या अजीवों की कोई भी पर्याय मेरे से हो जावे ऐसा नहीं है ; (५) पर्याय में जो विकास या न्यूनता होती है वह उसी __ के निरन्तर परिणमन के कारण है दूसरे का ज़रा , भी हस्तक्षेप नही है; (६) पर्याय हमेशा वह की वह, कभी भी, किसी की भी, नही होती है ; (७) ससार एक समय का है; (८) मोक्ष भी एक समय का है; (६) निमित्त-नैमित्तिक सम्बंध एक समय का है ; (१०) उपादान और निमित्त का सम्बंध भी एक समय __ का है। (११) द्रव्य को सर्वथा कूटस्थ मानने वाले झूठे है ; (१२) निरन्तर परिणमन' सदैव नवीन नवीन पर्याय को बतलाता है। द्रव्यत्व गुण का विस्तार जैन सिद्धांत प्रवेश रत्नमाला प्रथम मे देखो। प्रश्न (७०)--प्रमेयत्व गुण किसे कहते है ? उत्तर-जिस शक्ति के कारण से द्रन्य किसी न किसी ज्ञान का विषय हो उसे प्रमेयत्व गुण कहते हैं। प्रश्न (७१)-प्रमेयत्वगुण को जानने से थोड़े में क्या क्या लाभ हैं?' उत्तर-(१) पर पदार्थो में. शुभाशुभभावों में कर्ता-कर्म, भोक्ता भोग्य की खोटी बुद्धि का अभाव हो जाता है । (२) पर पदार्थो में, शुभाशुभभावों में ज्ञेय-ज्ञायक सम्बंध स्थापित हो जाता है।
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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