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________________ (११३) (८) मिथ्यात्व का अभाव होकर सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाती है। (E) केवली के समान ज्ञाता-दृष्टापना प्रगट हो जाता है। (१०) सामान्य विशेष वस्तु है ऐसा जानकर अपने सामा न्य की प्रोर दृष्टि करे तो वस्तु में निर्मल पर्याय की प्राप्ति होकर क्रम से निर्वाण की प्राप्ति होती है । (११) दूसरे के सामान्य विशेष पर दृष्टि करे तो चारों गतियों में घूमकर निगोद की प्राप्ति होती है ; (१२) सामान्य-विशेष के १० प्रकार हैं ६ प्रकार के सामान्य विशेष से दृष्टि हटाकर अपने दसवें प्रकार के सामान्य विशेष स्वभाव पर दृष्टि देवे तो सम्पूर्ण दुख का प्रभाव हो जाता है यह लाभ वस्तुत्व गुण के जानने से हैं । वस्तुत्व गुण का विस्तार जैन सिद्धांत प्रवेश रत्नमाला प्रथम भाग में देखो। प्रश्न (६८)-द्रव्यत्व गुण किसको कहते हैं ? उत्तर-जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्था निरन्तर बदलती रहती है उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं। प्रश्न (६६)-द्रव्यत्व गुण के थोड़े में क्या क्या लाभ है ? उत्तर-(१) सब द्रव्यों की अवस्था का निरन्तर परिणमन उसका उसी में होता है दूसरे से नहीं होता है; (२) प्रत्येक द्रव्य में अनन्तगुण हैं । मुणों में भी निरन्तर परिणमन उस गुण की योग्यता के कारण ही . होता है; (३) मेरी कोई पर्याय किसी दूसरे जीवों से या मजीवों
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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