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________________ (३) निमित्ता, उपादान दोनों पृथक पृथक अपने अपने स्वभाव में ही प्रर्वतते हैं, परिणमन करते हैं। प्रश्न (२०७)--निमित्त, उपादान पृथक पृयक कार्य करते है एक दूसरे का कोई सम्बंध नहीं है इसको जानने से क्या लाभ रहा ? उत्तर -- पूज्य गुरुदेव कहते हैं अहो ! पदार्थो का यह स्वभाव भली भाँति पहिचान ले तो भेदज्ञान होकर स्व द्रव्य के ग्राश्रय से निर्मल पर्याय का उत्पाद और मलिनता का व्यय हो उसका नाम धर्म है । यही सर्वज्ञ के सर्व उपदेश का तात्पर्य है। प्रश्न (२०८) शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से द्रव्य का लक्षण पंचाध्यायी मे क्या बताया है ? उत्तर--(१) जो सत् वरुप, (२) स्वत.सिद्ध, (३) अनादि अनात, । ४) स्वसहाय, (५) निर्विकल्प अर्थात् अखण्डित वह द्रव्य है। ऐसा बताया है। प्रश्न (२०६)--पंचाध्यायी में पर्यायार्थ कनय से द्रव्य का लक्षण क्या बताया है ? उत्तर-(१) गुण पर्यायवद् द्रव्यम्, (२) गुणपर्यय समुदायो द्रव्यम्. (३) गुण समुदायों द्रव्यम् (४) समगुण पर्यायों द्रव्यम् (५) उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त सत्-यह सब पर्यायाथिक नयसे द्रव्य के लक्षण हैं । प्रश्न (२१०)--पंचाध्यायी में प्रमाण से द्रव्य का लक्षण क्या बताया है ?
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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