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________________ ( ६४ ) वनी ? अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण लोर्ड के आधार से । अत लोई अधिकरण हुई । प्रश्न २६० - कोई चतुर प्रश्न करता है कि जैन शास्त्रो में आता है कि पर्याय मे से पर्याय नहीं आती है, अभाव में से भाव की उत्पत्ति नहीं होती है । तव फिर अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण लोई कर्ता और रोटी कर्म यह कैसे हो सकता है । उत्तर - अरे भाई । तुम्हारी वात ठीक है । पर्याय मे से पर्याय नही आती, अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है । परन्तु हमने तो, रोटी बनने से पूर्व कौनसी पर्याय का अभाव करके होती है, उसकी अपेक्षा अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण लोई को कर्ता कहा । परन्तु यह भी रोटी का सच्चा कर्ता नही है । प्रश्न २६१ - यदि लोई भी रोटी का सच्चा कर्त्ता नहीं है तो फिर रोटी का सच्चा कर्त्ता कौन है । उत्तर - उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ही रोटी का सच्चा कर्ता है और रोटी बनी वह कर्म है, क्योकि जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता है । प्रश्न २६२ -- उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादन कारण रोटी कर्ता और रोटी बनी यह कर्म, इस पर छह कारक किस प्रकार लगेंगे ? उत्तर- 'रोटी बनी' यह कर्म है, कार्य पर से छह प्रश्न उठते है । (१) रोटी किसने बनाई ? उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण रोटी ने । अत रोटी कर्ता हुई, (२) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण रोटी ने क्या किया ? रोटी बनाई । अत रोटी कर्म हुई । ( ३ ) रोटी किस साधन के द्वारा बनाई ? उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण रोटी के साधन द्वारा । अत रोटी करण हुई, (४) रोटी किसके लिए बनाई ? उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण रोटी के लिए । अत रोटी
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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