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________________ ( ५६ ) उत्तर-(१) घर मे लडकी उत्पन्न हुई प्रथम माँ-बाप को आधार माना (२) फिर पति को आधार माना। (३) पति के बाद लड़के को आधार माना । (४) लडके ने भी जवाब दे दिया तो रुपये पैसो का आधार माना । (५) रुपया-पैसा न रहा तो दिवाल को आधार माना, इसका फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद रहा। प्रश्न २२७-लडकी किसका आधार ले तो शान्ति आवे? उत्तर--एक मात्र अपनी आत्मा का आधार माने तो कल्याण हो । फिर परम्परा मोक्ष की प्राप्ति हो । प्रश्न २२८-पर्याय का आधार कौन है ? उत्तर-वास्तव मे 'उस समय पर्याय को योग्यता ही" पर्याय का , आधार है। प्रश्न २२६-जब प्रत्येक द्रव्य की पर्याय का आधार वह पर्याय ही है दूसरा नही है। तब दृष्टि में मेरा आधार मै ही हूँ ऐसा माननेजानने से क्या लाभ होता है ? उत्तर-(१) अनादिकाल से पर मे अपने आधार की कल्पना का अभाव हो जाता है, (२) 'स्वयभू' कहलाता है, (३) चारो गतियो का अभाव होकर पचमगति का मालिक बन जाता है, (४) . पचपरमेष्टियो मे उसकी गिनती होने लगती है (५) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग का अभाव हो जाता है, (६) पच परावर्तन का अभाव हो जाता है, (७) पचम पारिणामिक भाव का महत्व आ जाता है, (८) आठ कर्मों का अभाव हो जाता है, (६) गुणस्थानमार्गणा जीवस्थान से दृष्टि हट जाती है। प्रश्न २३०-द्रव्य कर्म कितने हैं ? उत्तर-आठ है-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय । प्रश्न २३१-कर्म आठ ही है कम-ज्यादा क्यो नहीं, शास्त्रो के "
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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