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________________ ( ३८ ) उत्तर -- उसने अजीव और सवर को एक माना - कर्मकारक को नही माना । प्रश्न १०१ – २८ सूलगुण पालने से मुनिपना माने तो क्या दोष आवेगा ? उत्तर - उसने आस्रव, बन्ध और सवर को एक माना - कर्मकारक को नही माना । प्रश्न १०२ --सवर तत्व सम्वन्धी भूल कैसे मिटे ? उत्तर - कर्म कारक का रहस्य जानने से । प्रश्न १०३ - सवर तत्व सम्बन्धी भूल कर्मकारक को मानने से कैसे दूर हो ? उत्तर-सवर तत्व " उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से" है । वह जीव से, अजीव से, आस्रव, बध से नही है । देखो, कर्मकारक को मानने से सवर तत्व सम्वन्धी भूल दूर हो गई । प्रश्न १०४ - भाव निर्जरा तत्व का कर्त्ता कौन है ? उत्तर - उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण भाव निर्जरा तत्व का सच्चा कर्ता है । प्रश्न १०५ - द्रव्यकर्म से भावनिर्जरा माने तो क्या दोष आता है ? - उत्तर - अजीव और निर्जरा तत्व को एक माना — कर्मकारक को नही माना । ? प्रश्न १०६ - जीव से निर्जरा माने तो क्या दोष आता है उत्तर - जीवतत्व और निर्जरातत्व को एक माना - कर्मकारक को नही माना । ? प्रश्न - १०७ - पुण्य से निर्जरा माने तो क्या दोष आवेगा उत्तर—आस्रव तत्व और निर्जरा तत्व को एक माना - कर्मकारक को नही माना ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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