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________________ ( 157 ) प्रदेशो मे रहा / इसमे निमित्त आकाश द्रव्य है। मुझ आत्मा के अनन्त गुणो मे निरन्तर परिणमन उसकी योग्यता से होता है / उसमे निमित्त कालद्रव्य है। (आ) औदारिकगरीर, तैजसशरीर, कार्माणशरीर, भाषा और मन का मुझ आत्मा के साथ मात्र एक क्षेत्रावगाही सम्बन्ध है तथा व्यवहारनय से ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध है। वास्तव मे तो ज्ञान पर्याय ज्ञेय और मुझ आत्मा ज्ञायक है। परन्तु यह भी भेद है और भेद के लक्ष्य से रागी जीव को राग की उत्पत्ति होती है। अत मुझ आत्मा ज्ञायक सो ज्ञायक ही है। इस प्रकार अभेद के लक्ष्य से जीव का कल्याण होता है। अत मुझ आत्म ज्ञायक-ज्ञायक / (इ) औदारिक शरीर, तेजसशरीर, कार्माणशरीर, भाषा और मन मे अनन्त पुदगल परमाणु हैं। प्रत्येक परमाणु अपनी-अपनी क्रियावती शक्ति के कारण गमन करता है जिसमे धर्मद्रव्य निमित्त है और गमन करके स्थिर होता है उसमे अधर्मद्रव्य निमित्त है और औदारिकशरीर आदि मे अनन्त पुद्गल परमाणु अपने-अपने प्रदेश मे अवगाहन करते हैं। उसमे निमित्त आकाशद्रव्य है। औदारिकशरीर आदि मे अनन्त पुद्गल परमाणु है और प्रत्येक परमाणु मे अनन्न-अनन्त गुण हैं। वे सब अपनी-अपनी योग्यता से परिणमन करते हैं उसमे कालद्रव्य निमित्त है। यह सब मूर्तिक द्रव्यो का पिण्ड, प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणो से रहित, जिनका नवीन सयोग हुआ है ऐसा औदारिक आदि शरीर (पुद्गल) पर हैं / ऐसी वस्तुस्थिति है। ऐसा वस्तुस्वरूप (निमित्त-नैमित्तिक) जानने-मानने से पात्र जीवो की पर मे से कर्तृत्वबुद्धि छूट जाती है। वे उन सबका ज्ञाता-दृष्टा ही रहते है / अत सुख और ज्ञान भी हर समय रहता है और क्रम मोक्षरूपी लक्ष्मी के नाथ बन जाते हैं। प्रश्न ७४-प्रश्न 73 के अनुसार वस्तुस्वरूप का ज्ञान अर्थात् निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का सच्चा ज्ञान और श्रद्धान का फल भगवान ने क्या बताया है ? उत्तर-"भव बन्धन तड्-तड़ टूट पडे, खिल जावे अन्तर की
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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