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________________ ( 156 ) उत्तर-सम्यक्त्व के सन्मुख पात्र अज्ञानी अपने शायक स्वभाव की श्रद्धा करके क्रम से ज्ञानियो की तरह मोक्ष को प्राप्त करते है। प्रश्न ६६-ज्ञानियो को ही पारमार्थिक सुख है और ज्ञान भी है अज्ञानियो को ना सुख है और ना ही ज्ञान है। ऐसा अपात्र अज्ञानी सुनकर क्या करता है ? उत्तर-भगवान की वाणी का विरोध करके चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद चला जाता है। प्रश्न ७०-ज्ञानियो को पारमार्थिक सुख और ज्ञान क्यो है ? उत्तर-ज्ञानियो को अपना श्रद्धान ज्ञान-आचरण होने से तथा वस्तुस्वरूप का ज्ञान होने से पारमार्थिक सुख और ज्ञान दोनो वर्तते है। प्रश्न ७१--अज्ञानियो को पारमार्थिक सुख और ज्ञान क्यो नहीं उत्तर-अज्ञानियो को अपना श्रद्धान-जान-आचरण ना होने से तथा वस्तुस्वरूप का ज्ञान ना होने से पारमार्थिक सुख और ज्ञान नही है। प्रश्न ७२-वस्तुस्वरूप कैसा है ? उत्तर-"अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं, कोई किसी के आधीन नही है, कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नही होती'' ऐसा वस्तुस्वरूप है। प्रश्न ७३–"मैं सुबह उठकर यहाँ आया" इस वाक्य मे वस्तुस्वरूप (निमित्त-नैमित्तिक) किस प्रकार है ? उत्तर-(अ) मैं आत्मा अनादिअनन्त ज्ञायक स्वरूप अनन्त गुणों का धारी अमूर्तिक प्रदेशो का पुंज हूँ। मुझ आत्मा का अपनी क्रियावती शक्ति के कारण गमनरूप परिणमन हुआ-फिर स्थिररूप परिणमन हुआ। गमनरूप परिणमन मे धर्म द्रव्य निमित्त है और स्थिररूप परिणमन मे अधर्म द्रव्य निमित्त है। मुझ आत्मा अपने असख्यात
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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