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________________ ( १२७ ) मरना । (३) एक शरीर मे रहने वाले निगोदिया जीवो का सवका एक साथ मरण होना। (४) हवाई जहाज का टूटना। (५) राकेट ऊपर जाना । (६) नदी का प्रवाह वदलना । (७) बांध का बनाना। (८) कच्चे फल को जल्दी पकाना । (६) पक्के फल को लम्वे काल तक कायम रखना । (१०) अकाल मरण । (११) कर्म का सक्रमण, उदीरणा, उत्कर्षण, स्थितिकाण्ड, अनुभागकाण्ड आदि सव काम अपने-अपने कार्य काल मे ही होते है, क्योकि प्रत्येक द्रव्य मे जितने जितने गुण हैं उस-उस प्रत्येक गुण मे तीन काल के जितने समय हैं उतनी-उतनी पर्याय है । वह निश्चित और क्रमवद्ध है। जरा भी आगे-पीछे नही हो सकती है ऐसी बात 'योग्यता' से सिद्ध होती है। प्रश्न :-योग्यता क्या है ? उत्तर-भवितव्यता अथवा नियति 'उस समय पर्याय की योग्यता है' वह क्षणिक-उपादान कारण है। प्रश्न १०-द्रव्य की योग्यता क्या है ? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने द्रव्यरूप ही रहता है, कभी दूसरे द्रव्यरूप नही होता, इसलिये द्रव्यरूप योग्यता द्रव्य रूप रहती है। प्रश्न ११ ---गुण को योग्यता क्या है ? उत्तर-प्रत्येक गुण अपने-अपने रूप ही रहता है। जैसे-ज्ञान गुण ज्ञानगुण रूप ही रहता है, श्रद्धा चारित्र रूप नही होता है। और पुद्गल मे रसगुण, रसगुण रूप ही रहता है गध-वर्ण-स्पर्शरूप नहीं होता है। यह गुणरूप योग्यता है। प्रश्न १२-पर्याय रूप योग्यता क्या है ? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य मे अनन्त-अनन्त गुण है। एक-एक गुण मे जिस समय जिस पर्याय की योग्यता है, वही होगी। एक समय भी आगे-पीछे नही हो सकती है। किसी भी तरह से उस योग्यता को टालने के लिए देव, इन्द्र, जिनेन्द्र भगवान भी समर्थ नही है। पर्याय की योग्यता एक समयमात्र की ही होती है।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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