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________________ ( ११६ ) पर १८-१८ प्रश्न उपादान- उपादेय के लगाकर फिर यहाँ से शुरू करो 1 ) प्रश्न - २०३ - 'दर्शन मोहनीय कर्म का अभाव कारण और क्षायिक सम्यक्त्व कार्य' कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना ? उत्तर- नही माना, क्योकि त्रिकाली उपादानकारण श्रद्धा गुण है और क्षायिक सम्यक्त्व कार्य है । प्रश्न २०४ - कोई चतुर दर्शन मोहनीय कर्म का अभाव कारण और क्षायिक सम्यक्त्व कार्य ऐसा कहे तो क्या दोष आता है ? उत्तर - दर्शन मोहनीय के अभाव को जीव का श्रद्धा गुण वनने का प्रसंग उपस्थित होवेगा, यह दोप आता है । प्रश्न २०५ - क्षायिक सम्यक्त्व का सच्चा कारण कौन कौन नहीं रहा ? उत्तर - उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ही सच्चा कारण है, क्योकि पर तो कारण है ही नही । श्रद्धा गुण और अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकारण क्षयोपशम सम्यक्त्व भी सच्चा कारण नही है । रहा और प्रश्न २०६ - क्षायिक सम्यक्त्व का सच्चा कारण 'उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ही है ऐसा जानने से किन-किन कारणों से वृष्टि हट गई तथा प्रत्येक पर 'कारणातुविधायोनि कार्याणि को कब माना और कब नहीं माना । लगाकर समझाइये ? उत्तर- (१) देव-गुरु । (२) दर्शन मोहनीय का अभाव । (३) श्रद्धा गुण, (४) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण क्षयोपशम सम्यक्त्व, इन सब से दृष्टि हट गई । प्रश्न २०७ - क्या गुरु कारण और ज्ञान कार्य । कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ? उत्तर -- प्रश्न २०३ से २०६ तक के अनुसार उत्तर दो ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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