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________________ ( १०८ ) उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १६८-मैंने औजारो से अलमारी बनाई। इस वाक्य में से 'ज्ञान पर' उपादान-उपादेय समझाइये ? उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १६६-~मेने चाबी द्वारा दुकान खोली। इस वाक्य मे से "ज्ञान पर' उपादान-उपादेय समझाइये ? । उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७०-मैंने चारपाई पर बिस्तरा बिछाया। इस वाक्य मे से "ज्ञान पर' उपादान-उपादेय समझाइये? उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७१-मैंने शरीर पर कपड़े पहरे। इस वाक्य में से 'ज्ञान 'पर' उपादान-उपादेय समझाइये? उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७२~-मैंने हाथो से रुपया माया। इस वाक्य में से 'ज्ञान 'पर' उपादान-उपादेय समझाइये? उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७३-मैने मुगदर के द्वारा कसरत की। इस वाक्य मे से 'ज्ञान पर' उपादान-उपादेय समझाइये? उत्तर-प्रश्न १३६ से १६३ तक के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न १७४-कार्य किस प्रकार होता है? उत्तर--कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है। प्रश्न १७५-~कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है, ऐसा कहाँ कहा है ? उत्तर-(१) "कारणानुविधायित्वादेव कार्याणा" अर्थात कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है। (२) कारण-अनुविधायित्वात् कार्याणा अर्थात् कारण जैसे कार्य होते हैं। [समयसार गा० १३०१३१ की टीका मे] (३) "कारणानुविधायीनि कर्याणि" कारण जैसा
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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