SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 ( १०३ ) उपादानकरण और ज्ञान उपादेय । इसको मानने से क्या लाभ हुआ ? उत्तर- ( १ ) भूत-भविष्यत् की पर्यायो की दृष्टि हट गई । (२) ज्ञान गुण जो त्रिकाली उपादान कारण था, वह भी अब व्यवहार कारण हो गया । (३) अब यहाँ पर ज्ञान के लिए मात्र अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान की तरफ देखना रहा । प्रश्न १४७ - कोई चतुर फिर प्रश्न करता है कि अभाव में से भाव की उत्पत्ति नहीं होती हैं और पर्याय मे से पर्याय नहीं आती है ऐसा जिनवाणी में कहा है । फिर यह मानना की अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय तौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण और ज्ञान उपादेय है, यह आपकी बात झूठी साबित है ? उत्तर - अरे भाई अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है और पर्याय मे से पर्याय नही आती है यह बात जिनवाणी की बिल्कुल ठीक है । परन्तु हमने तो कार्यं से पहिले कौन सी पर्याय होती है उसकी अपेक्षा से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर को ज्ञान का क्षणिक उपादान कारण कहा है । परन्तु अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर भी ज्ञान का सच्चा कारण नही है । प्रश्न १४८ -- अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर ज्ञान होने का सच्चा उहादानकारण नहीं है तो कैसा कारण है और कैसा कारण नहीं है ? उत्तर - अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर ज्ञान का अभाव - रूप कारण है व काल सूचक है परन्तु कार्य का जनक नही है । प्रश्न १४६ - अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण भी ज्ञान का सच्चा कारण नही है तो वास्तव मे ज्ञान का सच्चा उपादानकारण कौन है ? उत्तर - वास्तव मे उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ही ज्ञान का सच्चा उपादान कारण है ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy