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________________ ( १०२ ) कारणो से ज्ञान हुआ, ऐसी खोटी मान्यता का अभाव हो जाता है। (२) आत्मा मे अनन्तगुण है । सो ज्ञान गुण को छोडकर बाकी गुणो से दृष्टि हट जाती है । (३) अब यहाँ पर ज्ञान के लिए मात्र त्रिकाली उपादानकारण ज्ञान गुण की तरफ देखना रहा। इतना लाभ हुआ। प्रश्न १४३-कोई चतुर प्रश्न करता है कि-घड़ा, चाक, कीली, डंडा, हाथ, राग आदि निमित्तकारण हों तो इस सम्बन्धी ज्ञान होवे। आप कहते हो ज्ञान का निमित्त कारणों से कोई भी सम्बन्ध नहीं है। तो आत्मा का ज्ञानगुण त्रिकाली उपादानकारण और ज्ञान उपादेय । यह आपकी वात झूठी साबित होती है ? उत्तर-अरे भाई, हमने आत्मा के ज्ञानगुण को ज्ञान का उपादान कारण कहा है। वह तो घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ, राग आदि निमित्तकारणो से पृथक् करने की अपेक्षा से कहा है। वास्तव मे आत्मा का ज्ञान गुण भी ज्ञान का सच्चा उपादान कारण नहीं है। प्रश्न १४४-आत्मा का ज्ञान गुण भी ज्ञान का सच्चा अपादान कारण नहीं है तोशान का सच्चा उपादानकरण कौन है ? उत्तर-आत्या के ज्ञान गुण मे अनादिकाल से पर्यायो का प्रवाह चला आ रहा है। मानो दस नम्बर पर इस सम्बन्धी ज्ञान हुआ तो उसमे अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादानकारण यहाँ पर ज्ञान का सच्चा उपादान कारण है। प्रश्न १४५-- ज्ञानगुण में अनादिकाल से पर्यायों का प्रभाव क्यों चला आ रहा है ? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य व गुण अनादिअनन्त ध्रौव्य रहता हुआ, एक पर्याय का व्यय और दूसरी पर्याय का उत्पाद एक ही समय मे स्वय स्वत अपने परिणमन स्वभाव के कारण करता रहा है, करता है और भविष्य मे करता रहेगा। ऐसा वस्तु स्वरूप है। इसी कारण अनादिकाल से ज्ञान गुण मे पर्यायो का प्रवाह चला आ रहा है । प्रश्न १४६-अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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