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________________ ( १३६ ) उ० जितना द्रव्य का काल है उतना ही प्रमेयत्व गुरण का है क्योंकि प्रमेयत्व गुरण द्रव्य की सम्पूर्ण अवस्थाओं में त्रिकाल रहता है । प्र ० २६. पुद्गल परमाणु भी क्या ज्ञान का शेय हो सकता है ? वह भी ज्ञान का ज्ञ ेय है उसमें भी प्रमेयत्व गुरण है । परमाणु अवधि, मन:पर्यय तथा केवलज्ञानी के ज्ञान का ज्ञ ेय हो जाता है । उ. प्र. २७. सभी द्रव्यों के गुणों की भूत भविष्यत वर्तमान सब पर्यायें ज्ञान का ज्ञेय हो सकती हैं ? हां वह सब केवलज्ञानी के केवलज्ञान की पर्याय में एक समय में एक साथ ज्ञेय हैं ? प्र० २५. सब द्रव्यों की भूत भविष्यत वर्तमान पर्याय केवलज्ञानी केवलज्ञान में एक साथ एक समय में जानते हैं यह कहाँ पाया है ? चारों अनुयोगों में प्राया है ? उ० (१) प्रवचनसार गा० ३७, ३८, २१, ४७ तथा २०० में (२) तत्वार्थ सूत्र ध्याय पहला सूत्र २६वां (३) रत्नकरण्ड श्रावकाचार पहला श्लोक (४) छहढाला में चौथी ढाल में : - सकल द्रव्य के गुण अनंत पर्जाय श्रनन्ता । जाने एकै काल प्रगट केवलि भगवन्ता ॥ (५) घवला पुस्तक १३ पृ० ३४६ से ३५३ तक । प्र० २६. कितने ही पंडित नाम घराने वाले, त्यागी नाम धराने वाले
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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