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________________ Яс उ० बिल्कुल गलत है; क्योंकि प्रत्येक द्रव्य प्रमेयस्व गुण वाला हैं । प्रत्येक पदार्थ किसी न किसी ज्ञान का विषय होता है इसलिए रूपी और रूपी दोनों पदार्थ अवश्य ही बराबर ज्ञात होते हैं । उ० Яо ७. ज्ञान करने की और ज्ञात होने की यह दोनों शक्तियां एक साथ किसमें हैं ? एक मात्र जीव द्रव्य में ही हैं । ( १२६ ) योग्य | त्व = अर्थात पना । विशेष रूप से ख्याल में प्राने योग्य पना । उ० ६. रूपी पदार्थ ज्ञान में ज्ञात होते हैं । प्ररूपी पदार्थ ज्ञात नहीं होते । क्या यह बात ठीक है ? Я о ८. पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल में भी यह दोनों शक्तियां हैं ना ? То उ० नहीं है क्योंकि मात्र ज्ञेयपने की शक्ति पुद्गल, धर्म, अधर्म, प्रकाश और काल में है, ज्ञान करने की नहीं है । ६. हम ऐसा कार्य करे किसी को भी पता न चले, ऐसा कहने वाला क्या भूलता है ? (१) प्रेम यत्व गुरण को भूलता है । (२) भरहंत सिद्ध को नहीं मानता क्योंकि संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं जो अरहंत सिद्ध ना जानते हो । (३) प्रवधिज्ञानी, मन:पर्यय ज्ञानी को नहीं माना ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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