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________________ KINDER W Shar के भी जानकार थे। उनकी ६७ रचनाओं का संकलन 'ब्रह्म-विलास' नाम से सन् १९०३ में हिन्दी ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित हुआ था। 'भैया' की सभी कृतियां निर्गुण अथवा सगुण भक्ति से सम्बन्धित हैं । एक भक्त भगवान जिनेन्द्र की पुष्पों से पूजा करता हुआ कहता है कि हे भगवन् ! इस कामदेव ने समूचे विश्व को जीत लिया है। उसे इसका घमण्ड भी बहुत है। मुझे विश्वास है कि आपके चरणों की शरण में जाने से प्रबल कामदेव की निर्दयता का शिकार मैं न हो पाऊँगा : "जगत के जीव जिन्हें जीत के गुमानी भयो। ऐसो कामदेव एक जोधा जो कहायो है ॥ ताके शर जानियत फलनि के वृन्द बहु । केतकी कमल कुद केवरा सुहायो है ॥ मालती सुगंध चारू बेलि की अनेक जाति । चंपक गुलाब जिन चरण चढ़ायो है ।। तेरी ही शरण जिन जारे न बसाय याको। सुमत सौ पूजे तोहि मोहि ऐसी भायो है ।" द्यानतराय एक प्रमुख कवि थे। इनका जन्म वि० सं० १७३३ में आगरे में हुआ था। उनकी शिक्षा विधिवत् हुई। उन्हे उर्दू फारसी का ज्ञान कराया गया, तो संस्कृत के माध्यम से धार्मिक शिक्षा भी दी गई । उनका गृहस्थ जीवन दुःखी रहा । वे वि० सं० १७८० में दिल्ली में आकर रहने लगे थे। उनकी प्रसिद्ध रचना 'धर्म-विलास' यहां पर ही पूरी हुई। इसमें पदों की संख्या ३२३ है, कुछ पूजायें हैं । ग्रन्थ के साथ विस्तृत प्रशस्ति भी निबद्ध है, जिससे आगरे की सामाजिक परिस्थिति का अच्छा परिचय मिलता है । इसके पदों में भक्ति-रस तो साक्षात् ही बह उठा है। द्यानतराय ने पूजा और प्रारतियों का निर्माण करके, जैन भक्ति की परम्परा में जैसा सरस योगदान किया है, वैसा उस समय तक अन्य कोई नहीं कर सका था। उनकी 'देव-शास्त्र-गुरु पूजा का तो प्रत्येक जैन मन्दिर में प्रतिदिन पाठ होता है । इसके अतिरिक्त बीसतीर्थङ्कर, पंचमेरु, दशलक्षण, सोलहकारण, रत्नत्रय, निर्वाणक्षेत्र, नन्दीश्वरद्वीप, सिद्धचक्र और सरस्वती पूजायें भी उन्ही की कृतियाँ हैं। उन्होंने पांच प्रारतियों का भी निर्माण किया था। उनका प्रारम्भ क्रमश: 'इह विधि मंगल प्रारति कीजै, 'प्रारति श्री जिनराज तिहारी', 'प्रारति कीजै श्री मुनिराज की', 'करो प्रारती वर्द्धमान की', और 'मंगल प्रारती प्रातमरामा' से होता है । उनके स्वयम्भू, पार्श्वनाथ और एकीभावस्तोत्रों में पार्श्वनाथ स्तोत्र' मौलिक है। इनके अतिरिक्त समाधिमरण म 5555555555** *5554 5 6 $146
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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